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________________ १३८ लघ्वर्हन्नीति उपरोक्त विधि बिना परीक्षा के क्रय की गई वस्तु के सम्बन्ध में है। परखी गई वस्तु का क्रय करने पर उसे वापस नहीं किया जा सकता है और न ही दिया गया धन वापस लिया जा सकता है, इसका कथन - परीक्षापूर्वकं क्रीतं क्रय्यं यत्स्वामिना स्वयम्। तद्विक्रेता न गृह्णीयाल्लब्धं प्रत्यर्पयेन्न च॥८॥ यदि स्वामी द्वारा स्वयं परीक्षण के पश्चात् क्रेय वस्तु क्रय की गई है तो विक्रेता विक्रय की गई वस्तु को न (वापस) ग्रहण करे और न ही प्राप्त हुए (मूल्य) को लौटाये। (वृ०) अथपरीक्षाप्रसङ्गात्स्वर्णादिहानिपरीक्षामाह - परीक्षा के प्रसङ्ग से स्वर्ण आदि की क्षति की परीक्षा का वर्णन - वह्नौ स्वर्णस्य नो हानिः रजतस्य पलद्वयम्। त्रपोरष्टौं च ताम्रस्य पञ्चायसि पलानि दिक्॥९॥ अग्नि (तपाने से) स्वर्ण की हानि नहीं होती है, चाँदी की दो पल (भार माप-विशेष), रांगा या जस्ता की आठ, ताम्र की पाँच और लोहा की दस पल हानि होती है। (वृ०) प्रतिशत पलमेषा हानिर्जेया अधिकहानौ तु शिल्पी दण्ड्यो भवति। उपरोक्त धातुओं में प्रति सौ पल में यह (श्लोक में निर्दिष्ट) क्षति जाननी चाहिए इससे अधिक हानि होने पर शिल्पकार दण्डित किया जाना चाहिए। यदुक्तं बृहदर्हन्नीतौ - हाणी णहु सुवणेअमीए पलदुग्गं भवे रयए। तंवस्स पञ्च लोहे दस सीसे अठयइसयगं॥१॥ जैसा कि बृहदर्हन्नीति में कहा गया है - निश्चित रूप से अग्नि में स्वर्ण की हानि नहीं होती है, सौ पल चाँदी में दो पल की हानि होती है, ताम्र में पाँच, लौह में दस और सीसे में आठ पल की हानि होती है। (वृ०) अथवस्त्वन्तरविषये विशेषमाह - उपरोक्त धातुओं से भिन्न वस्तुओं के सम्बन्ध में विशेष कथन - कार्पासे सौत्रिके चौर्णे स्थूलसूत्रेण निर्मिते।। ज्ञेया दशपलावृद्धिः शते प्रक्षालिते सति॥१०॥ १. त्रपुषष्टौ भ १, प १, त्रपुपौष्टौ भ २, प २॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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