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________________ क्रयेतरानुसन्तापप्रकरणम् . विक्रीय द्रव्यं यो मन्येन्मूल्यमल्पमुपागतम्। तस्य चित्तेऽनुपातो यो विक्रीतानुशयो भवेत्॥३॥ जो वस्तु का विक्रय कर यह माने कि अल्प मूल्य प्राप्त हुआ तो उसके मन में जो खेद हो वह विक्रीतानुशय - बिक्री का खण्डन होता है। (वृ०) अथ वस्तुविशेषपरीक्षाकालवधिमाह - वस्तु-विशेष की परीक्षा के काल की मर्यादा का वर्णन - स्त्रीदोह्य बीजवाह्यायोरत्नपुंसां परीक्षणे। क्रीतानामवधिर्जेयो मासस्त्रिदशपञ्चभूः॥४॥ दिनं सप्तदिनं पक्षश्चात्र दोषे निरीक्षिते। क्रेतादातुं दत्तद्रव्यं शक्तः प्रत्यर्थक्रीतकम्॥५॥ क्रयं की हुई स्त्री (दासी), दुहे जाने योग्य पशु (गाय, भैंस आदि), बीज, भार वाहक पशु, रत्न और पुरुष के परीक्षा की अवधि क्रमशः एक मास, तीन दिन, दस दिन, पाँच दिन, सात दिन और एक पक्ष (पन्द्रह दिन) जाननी चाहिए। इस (अवधि) में दोष दिखाई पड़ने पर क्रेता क्रय की हुई वस्तु को लौटाकर दिये गये धन को वापस ले सकता है। (वृ०) अथोक्तव्यतिरिक्तविषयव्यवस्थामाह - उपरोक्त वर्णित वस्तुओं से भिन्न वस्तुओं के सम्बन्ध में व्यवस्था का वर्णन क्रीतं प्रत्यर्पितुं वस्तुग्राहकश्चेत्समीहते। अविकृतं तद्दिने चैव तर्हि प्रत्यर्पयेद् धुवम्॥६॥ ददद्वितीये दिवसे पणस्त्रिंशांशहानिभाक्। तृतीये द्विगुणाहानिः परतो देयमेव न॥७॥ यदि क्रय की हुई वस्तु को ग्राहक वापस करना चाहता है तो उसमें बिना विकृति उत्पन्न किये उसी दिन अवश्य वापस कर देना चाहिए। ग्राहक द्वारा (क्रीत वस्तु) दूसरे दिन वापस करने पर मूल्य के तीसवें भाग की हानि होगी, तीसरे दिन वापस करने पर (इससे) दुगुना अर्थात् मूल्य के पन्द्रहवें भाग की हानि होगी। तीनदिन के पश्चात् (क्रीत वस्तु) वापस नहीं करनी चाहिए। (वृ०) अयमपरीक्षितवस्तुग्रहणे विधिः परीक्षितग्रहे तु न हि क्रीतवस्तुनः प्रत्यर्पणं न च दत्तादानं भवतीत्याह - १. २. दौडवीज० भ १, भ २, प १, प २॥ देयवेमन भ १, भ २, प २ देयवैमन प १॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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