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________________ दायभागप्रकरणम् १११ पुत्र की स्वीकृति के बिना पुत्रवधू वंश-क्रम से प्राप्त, श्वसुर की अविभाजित सम्पत्ति को व्यक्तिगत कार्य के लिए व्यय करने की अधि- कारिणी नहीं है। 'विभक्ते तु व्ययं कुर्याद् धर्मादिषु यथारुचि। तत्पत्न्यपि मृतौ तस्य कर्तुं शक्ता न तद्वययम्॥१०१॥ (सम्पत्ति का) विभाजन हो जाने पर पत्नी, धर्मादि कार्यों में अपनी रुचि के अनुसार व्यय करे लेकिन (पति) की मृत्यु हो जाने पर वह भी उस सम्पत्ति का व्यय करने की अधिकारिणी नहीं है। निर्वाहमात्रं गृह्णीयात् तद्रव्यस्य च मिषतः। प्राप्तोऽधिकारं सर्वत्र द्रव्ये व्यवहृतौ सुतः॥१०२॥ अपने निर्वाह मात्र हेतु उस धन का ब्याज रूप ग्रहण करे। मूलधन पर सर्वत्र अधिकार (मृतक के) पुत्र को है। तथापीशो व्ययं कर्तुं न ह्यम्बानुमतिं विना। सुते परासौ तत्पत्नी भर्तुर्धनहरी स्मृता॥१०३॥ तब भी माता की आज्ञा बिना वह पुत्र (धन) व्यय करने का अधिकारी नहीं है, पुत्र की मृत्यु के पश्चात् उसकी पत्नी पति के धन को ग्रहण करने वाली कही गई है। यदि सा शुभशीला स्त्री श्वश्रूनिर्देशकारिणी। कुटुम्बपालने शक्ता स्वधर्मनिरता' सदा॥१०४॥ सानुकूला च सर्वेषां भर्तुर्मचकसेविका। श्वश्रू याचेत पुत्रं हि विनयानतमस्तका॥१०५॥ न हि सापि व्ययं कर्तुं समर्था तद्धनस्य वै। निजेच्छया निजां श्वश्रूमनापृच्छच च कुत्रचित्॥१०६॥ शुभ आचरणवाली, सास की आज्ञा का पालन करने वाली, परिवार के पालन में समर्थ, सदा अपने कर्त्तव्य में लीन, सभी कुटुम्बियों के अनुकूल आचरणवाली और पति-शय्या का सेवन करने वाली, पुत्रवधू अपनी सास एवं पुत्र से विनय से अवनत मस्तक वाली हो याचना करे। परन्तु वह उस धन को कभी सास से पूछे बिना अपनी इच्छा से व्यय करने में समर्थ नहीं है। . (वृ०) विभक्तधनव्ययीकरणे तु सर्वेषामधिकारोऽस्त्येवेति। १. विभक्तं भ १, भ २, प १, प २॥ २. . ०तासमा भ १, भ २, प १, प २॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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