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________________ दायभागप्रकरणम् १०९ एषां तु पुत्रपत्न्यश्चेच्छुद्धा भागमवाप्नुयुः। दोषस्यापगमे त्वेषां भागार्हत्वं प्रजायते॥१३॥ इन (दोषयुक्त पुत्रों) के यदि पुत्र और पत्नी शुद्ध हों तो वे (सम्पत्ति में) हिस्सा प्राप्त करें। इन (दोषयुक्त पुत्रों) का दोष दूर हो जाने पर इनमें हिस्सा प्राप्त करने की योग्यता उत्पन्न हो जाती है। (वृ०) ननु विवाहितोऽपि दत्तको यदि मातृपितृभ्यां प्रतीपः स्यात्तदा किं कार्यमित्याह- . यदि गोद लिया हुए पुत्र का विवाह हो गया हो और वह माता-पिता के विरुद्ध हो जाय तो क्या करना चाहिए, इसका कथन - विवाहितोऽपि चेद्दत्तः पितृभ्यां प्रतिकूलभाक्। भूपाज्ञापूर्वकं सद्यो निस्सार्यो जनसाक्षितः॥९४॥ यदि दत्तक पुत्र विवाह के बाद भी माता-पिता की आज्ञा के विरुद्ध आचरण करने वाला हो जाये तो राजा की आज्ञा लेकर लोगों को साक्षी बनाकर उसे शीघ्र निष्कासित कर देना चाहिए। (वृ०) ननु कोऽपि पत्नीपुत्रभ्रातृसम्मतिमन्तरा पैतामहं धनं कस्मैचिद्दातुमीश्वरः स्यान्न वा इत्याह - कोई व्यक्ति पितामह के धन को पत्नी, पुत्र और भाई की सहमति के विना किसी को देने में समर्थ है या नहीं, यह कथन- ---- पैतामहं वस्तुजातं दातुं शक्तो न कोऽपि हि। अनापृच्छय निजां पत्नी पुत्रान् भ्रातृगणं च वै॥९५॥ पितामहार्जिते द्रव्ये निबन्धे च तथा भुवि। पितुः पुत्रस्य स्वामित्वं स्मृतं साधारणं यतः॥९६॥ पितामह (दादा या पितरों) द्वारा उपार्जित वस्तुओं को अपनी पत्नी, पुत्र और भाइयों से पूछे बिना किसी को नहीं दे सकता क्योंकि पितामह द्वारा अर्जित द्रव्य, जागीर तथा भूमि पर पिता और पुत्र का अधिकार सामान्य रूप से कहा गया है। (वृ०) ननु बहुस्त्रीष्वेकस्याः पुत्रो जातोऽस्ति स एव सर्वपुत्रवतीनां धनस्य स्वामी स्याद्वा नेत्याह - (किसी पुरुष की) बहुत सी स्त्रियों में से एक को पुत्र उत्पन्न हुआ हो तो वही (पुत्र) सभी माताओं के धन का स्वामी हो अथवा नहीं, इसका कथन - जातेनैकेन पुत्रेण पुत्रवत्योऽखिलाः स्त्रियः। अन्यतरस्या अपुत्राया मृतौ स तद्धनं हरेत्॥९७॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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