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________________ दायभागप्रकरणम् पति के पतित हो जाने, गायब हो जाने, विक्षिप्त हो जाने, संन्यास ले लेने और मृत्यु हो जाने पर उसकी सम्पूर्ण सम्पत्ति की स्वामिनी विवाहिता स्त्री हो। कुटुम्बपालने शक्ता ज्येष्ठा या च कुलाङ्गना। पुत्रस्य सत्त्वेऽसत्त्वे च भर्तृवत्साधिकारिणी॥५३॥ परिवार के पालन में सक्षम, जो ज्येष्ठ और कुलीन हो वह पुत्रवती हो या न हो पति की भाँति वही सम्पत्ति की अधिकारिणी है। (वृ०) नन्चौरसपुत्राभावे तया कः पुत्रो दत्तत्वेन ग्राह्य इत्याह - वैध पुत्र या पति से उत्पन्न पुत्र के अभाव में विधवा द्वारा किसे दत्तक पुत्र के रूप में ग्रहण करना चाहिए, इसका कथन - भ्रातृव्यं तदभावे तु स्वकुटुम्बात्मजं तथा। असंस्कृतं संस्कृतं च तदसत्त्वे सुतासुतम्॥५४॥ बन्धुजं तदभावे तु तस्मिन्नसति गोत्रजम्। तस्यासत्वे लघु सप्तवर्षसंस्थं च देवरम्॥५५॥ विधवा स्वौरसाभावे गृहीत्वा दत्तरीतितः। अधिकारपदे भर्तुः स्थापयेत्पञ्चसाक्षितः॥५६॥ यदि स दत्तकः पित्रोः प्रीत्या सेवासु तत्परः। विनयी भक्तिनिष्ठश्च भवेदौरसवत्तदा॥५७॥ भतीजा को दत्तक पुत्र बनाये, उस (भतीजा के न होने पर) अपने परिवार की सन्तान, चाहे उसका संस्कार हुआ हो या न हुआ हो और उसके न होने पर पुत्री के पुत्र (दौहित्र) को दत्तक बनाये। उस (पुत्री के पुत्र) के अभाव में (अपने) भाई के पुत्र, भाई के पुत्र के न रहने पर अपने गोत्र में उत्पन्न और उसके न होने पर अपने सातवर्षीय कनिष्ठ देवर को विधवा अपने कोख से उत्पन्न पुत्र के अभाव में दत्तक पुत्र बनाये और उसे पति के अधिकार स्थान पर पाँच साक्षियों के समक्ष स्थापित करे। यदि वह दत्तक पुत्र विनयी और भक्तिनिष्ठ है और प्रीतिपूर्वक मातापिता की सेवा में तत्पर है तो वह औरस (अपनी कोख से उत्पन्न) के समान ही है। (वृ०) ननु दत्तपुत्रग्रहणे का रीतिरित्याह - दत्तक पुत्र ग्रहण करने की क्या रीति है? यह कथन - १. कटुंव भ १, भ २, कटुंब प १।।
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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