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________________ ९८ लघ्वर्हन्नीति स्वामी के मरने पर वह पुरुष अधिकार प्राप्त कर धन विनष्ट कर दे अथवा खा डाले अथवा स्वामिनी विधवा के प्रतिकूल आचरण करे तब क्या करना चाहिए, इसका कथन - प्राप्याधिकारं पुरुषः परासौ गृहनायके। स्वामिना स्थापितं द्रव्यं भक्षयेद्वा विनाशयेत्॥४७॥ भवेच्येत्प्रतिकूलश्च मृतवध्वाः कथञ्चन। तदा सा विधवा सद्यः कृतघ्नं तं मदाकुलम्॥४८॥ भूपाज्ञापूर्वकं कृत्वा स्वाधिकारपदच्युतम्। नरैरन्यैः स्वविश्वस्तैः कुलरीतिं प्रचालयेत्॥४९॥ गृहस्वामी की मृत्यु हो जाने पर अधिकार प्राप्त कर वह पुरुष स्वामी द्वारा स्थापित धन को खा जाय अथवा विनष्ट कर दे और कभी मृतक की विधवा के विपरीत हो जाय तब वह विधवा शीघ्र ही उस मदान्ध कृतघ्न को राजा की आज्ञापूर्वक उस अधिकार से हटाकर अपने दूसरे विश्वस्त पुरुषों द्वारा कुलरीति का सञ्चालन करे। तद्रव्यमतियत्नेन रक्षणीयं तया सदा। कुटुम्बस्य च निर्वाहस्तन्मिषेण भवेद्यथा॥५०॥ उस विधवा द्वारा वह धन सदा बहुत यत्नपूर्वक रक्षणीय है जिससे उस धन के ब्याज से कुटुम्ब का पालन हो सके। सत्यौरसे तथा दत्ते सुविनीतेऽथवासति। कार्ये सावश्यके प्राप्ते कुर्याद्दानाधिविक्रयम्॥५१॥ उस विधवा के उत्तम विनयवाला औरस (अपनी कोख से उत्पन्न) अथवा दत्तक पुत्र हो अथवा न हो आवश्यक कार्य आने पर वह (सम्पत्ति का) दान, धरोहर रखना अथवा विक्रय करे। (वृ०) ननु भर्तुर्मरणादौ तद्धनस्वामित्वे कस्याधिकार इत्याह - पति की मृत्यु आदि होने पर उसके धनस्वामित्व पर किसका अधिकार है, इसका कथन - भ्रष्टे नष्टे च विक्षिप्ते पत्यौ' प्रव्रजिते' मृते। तस्य निश्शेषवित्तस्याधिपा स्याद्वरवर्णिनी॥५२॥ १. २. यत्पौ भ २, यत्यौ प २॥ प्रवृजिते भ १, भ २, प १, प २॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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