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________________ दायभागप्रकरणम् यस्यैकायां तु कन्यायां जातायां नान्यसन्ततिः। प्राप्तं तस्याधिपत्यं तु सुतायास्तत्सुतस्य च॥३०॥ जिसके अकेली कन्या उत्पन्न हो अन्य सन्तान न हो उसकी सम्पत्ति का स्वामित्व पुत्री और उस पुत्री के पुत्र (दौहित्र) को प्राप्त होता है। (वृ०) तदाधिपत्यप्रतिबन्धकीभूतपत्न्यादीनामभाव आत्मजसम्बन्धित्वेन पुत्रिकाः दौहित्रकाश्च दाये समा एवातस्तत्सत्वे न ह्यन्यो धनहरणे शक्तः स्यात् यदुक्तम् स्वामी की मृत्यु के पश्चात् उसकी सम्पत्ति के स्वामित्व में प्रतिबन्धक होने वाली पत्नी आदि के न होने पर स्वयं से उत्पन्न होने के कारण पुत्रियाँ तथा दौहित्र (पुत्री के पुत्र) सम्पत्ति में बराबर के भागी हैं। उनके रहने पर दूसरे लोग धनहरण करने में समर्थ नहीं हैं, जैसा कि कहा गया है - आत्मा वै जायते पुत्रः पुत्रेण दुहिता समा। तस्यामात्मनि तिष्ठन्त्यां कथमन्यो धनं हरेत्॥३१॥ आत्मा ही पुत्र रूप में उत्पन्न होता है। पुत्र के समान पुत्री होती है। उस आत्मा रूप पुत्री के रहने पर दूसरा धन का हरण कैसे कर सकता है। (वृ०) नन्वपुत्रपित्रोर्मरणे तद्रव्यस्वामित्वं सामान्यतो दुहितु- दौहित्रस्य चोक्तं तत्रापि मातृद्रव्यस्य कः स्वामी पितृद्रव्यस्य च क इति विशेषजिज्ञासायामाह ___पुत्ररहित माता-पिता के मरने पर सामान्यतः पुत्री तथा पुत्री के पुत्र (दौहित्र) का उनकी सम्पत्ति पर स्वामित्व कहा गया है। माता की सम्पत्ति का स्वामी कौन होगा और पिता की सम्पत्ति का स्वामी कौन होगा, इस जिज्ञासा के विषय में कथन - गृह्णाति जननीद्रव्यमूढा च यदि कन्यका। पितृद्रव्यमशेषं हि दौहित्रः सुतरां हरेत्॥३२॥ और यदि माता की सम्पत्ति विवाहिता कन्या ग्रहण करती है तो पिता की समस्त सम्पत्ति पुत्री का पुत्र सुखपूर्वक ग्रहण करे। पौत्रदौहित्रयोर्मध्ये भेदोऽस्ति न हि कश्चन। तयोर्देहे हि सम्बन्धः पित्रोदेहस्य सर्वथा॥३३॥ पौत्र (पुत्र के पुत्र) और दौहित्र (पुत्री के पुत्र) के मध्य कोई भेद नहीं है १. ०न्तस्स्वाधि० भ १, भ २, प १, प २।।
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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