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________________ देयविधिप्रकरणम् पुनश्चचतुर्विधं दानं प्रोक्तं दत्तं तथेतरम् । अदेयदेयमिति च व्यवहारे विचक्षणैः ॥५॥ पुनः व्यवहार में कुशल पुरुषों द्वारा दान चार प्रकार का कहा गया है - १. अप्रत्याहरणीय दत्त, २. व्यावर्तनीय अदत्त, ३. परकीय साधारण अदेय और ४. स्वकीय असाधारण देय। १. (वृ०) तत्राप्रत्याहरणीयं दत्तम् । जो पुनः वापस नहीं लिया जा सकता है वह दत्त है। व्यावर्त्तनीयमदत्तम्। जो पुनः वापस लिया जा सकता है वह अदत्त है । परकीयं साधारणं च द्रव्यमदेयम् । परकीय और साधारण द्रव्य अदेय है। स्वकीयमसाधारणं च द्रव्यं देयम् । स्वकीय और असाधारण द्रव्य देय है। तत्र दत्तं षड्विधं तथाहि उसमें दत्त दान छः प्रकार का है जैसाकि - क्रीतमूल्यवेतनं च 'प्रीत्या दानं च कीर्त्तये । धर्मे प्रत्युपकारे च दानं दत्तं हि षड्विधम् ॥६॥ - - दत्त दान निश्चित रूप से छः प्रकार का है १. क्रय की गई (वस्तु) का मूल्य, २. कार्य हेतु वेतन, ३. प्रीतिपूर्वक दान, ४. यश हेतु दान, ५. धर्मार्थ दान और ६. प्रत्युपकार दान | अदत्तं षोडशविधं अदत्त दान सोलह प्रकार का है भयात् क्रोधेन शोकेनोत्कोचेन परिहासतः । बलाद्वयत्यासतश्चैव मत्तोन्मतार्त्तबालकैः ॥७॥ ८१ परतन्त्रेण मन्देन प्रतिलाभेच्छ्या पुनः । कुपात्रे पात्रबुद्ध्या च कुधर्मे धर्मबुद्धितः ॥८॥ दत्तं द्रव्यं च यत्तद्वै वस्तुतोऽदत्तमेव च। कथ्यतेऽत्र कलामानमिदं व्यवहृतौ सदा ॥ ९ ॥ प्रासादानं भ १, प्रीसादानं भ २ प १, २ ॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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