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________________ ( १ ) शब्दार्थः - मोक लक्ष्मीना कल्याण की मागृह, चक्रवर्ती ने देवेंद्रए जेमना चरण कमलने वांद्या बे एवा हे सर्वज्ञ ! सर्वातिशय प्रधान, हे ज्ञान कला निधान ! तमे घणा काल पर्यंत जयवंता वर्तो ॥ १ ॥ रत्नाकर पचीसोनो विस्तारार्थे. , व्याख्या:- हें नरेंड़ देवेंश्नतांत्रिपद्म, नरेंड़ के चक्रवर्त्यादिक देवें के अमरेशदिक एटले मनुष्यना इंड़ ते नरेंड़ अने 'देवोना इं ते देवेंड़, तेनए जेनां चरणकमलने वंदन कर्या ब; एवा हे नरें देवेंनतांत्रिपद्म ! ने समस्त वस्तुना जानारा माटे हे सर्वज्ञ ! संपूर्ण जे निरोगादिक अतिशय - तेणे करी प्रधान, ' माटे हे सर्वातिशय प्रधान ! ने ज्ञान के० कवलज्ञान अने बहोर कला, तेना निधान के निधि एवा हे ज्ञान - निधान ! श्रेयसः के० मोहनी जे श्रीके० लक्ष्मी तेना बगल के कल्याणनुं, के लिसन के० क्रीमानुं गृह, एवा हे मंगल केलिसन के मोह लक्ष्मी कल्याण क्रीमाना मंदिर ! जक्त लोकना समस्त संकटना डर करनार तुं चिरं के० घणा काल पर्यंत जय के सर्वोत्कर्ष करीने वर्तो. ॥ १ ॥
SR No.022028
Book TitleRatnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
PublisherBalabhai Kakalbhai
Publication Year1909
Total Pages64
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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