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________________ - ३३४ ] गृहिप्रत्याख्यानभेदाः २०५ प्रायमाशङ्कय गुरुराह-भण्यते तत्र प्रतिवचनम् । विषयाबहिः प्रतिषेधोऽनुमतेरपि, यत आगतं भाण्डाद्यपि न गृह्णातोत्यादाविति ॥३३२॥ अत्रैवं व्यवस्थिते सति-. केई भणंति गिहिणो तिविहं तिविहेण नत्थि संवरणं । तं न जओ निद्दिट्ठ पन्नत्तीए विसेसेउं ॥३३३॥ केचनाहन्मतानुसारिण एवापरिणतसिद्धान्ता भणन्ति । किम् ? गृहिणः त्रिविधं न करोतो. त्यादि । त्रिविधेन मनसेत्यादिना। नास्ति संवरणं न विद्यते प्रत्याख्यानम् । तन्न तदेतदयुक्तम् । किमिति ? यतो निर्दिष्टं प्रज्ञप्तौ भगवत्याम् । विशेषः अविषये "तिविहं पि" इत्यादिनेति ॥३३३॥ आह ता कह निज्जुत्तीए णुमतिनिसेहु त्ति से सविसयम्मि । सामन्ने वान्नत्थ उ तिविहं तिविहेण को दोसो ॥३३४॥ यद्येवं तत्कथं नियुक्तौ प्रत्याख्यानसंज्ञितायाम् अनुमतिनिषेध इति "दुविहं तिविहेण पढमउ" इत्यादिवचनेन ? अत्रोच्यते-स स्वविषये यत्रानुमतिरस्ति तत्र तनिषेधः, सामान्ये वा जिस कार्यसे उसका कुछ प्रयोजन नहीं है ऐसे अपने अविषयभूत सावध कार्यके विषयमें वह अपनी अनुमतिका परित्याग कर सकता है, उसमें कुछ बाधा नहीं है ।।३३२॥ आगे इस विषयमें अन्य किन्हीं आचार्योंके अभिमतको दिखलाते हुए उसका भी निषेध किया जाता है यहां कितने ही जैन मतानुयायी कहते हैं कि गृहस्थके तीन प्रकारसे-मन, वचन और यसे-कृत, कारित व अनुमत तीन प्रकारके सावद्यका प्रत्याख्यान सम्भव नहीं है। इसके समाधानमें यहां कहा जा रहा है कि ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि प्रज्ञप्ति (व्याख्याप्रज्ञप्ति ) में विशेष करके वैसा कहा गया है, अर्थात् भगवतीसूत्रमें यह निर्देश किया गया है कि गृहस्थ भी विषयके बहिर्भूत कृत-कारितादिरूप तीन प्रकारके सावध कर्मका तीन प्रकारसे प्रत्याख्यान कर सकता है ।।३३३॥ आगे इस प्रसंगमें शंकाकारके द्वारा उद्भावित शंकाको प्रकट करते हुए उसका समाधान किया जाता है शंकाकार कहता है कि जब व्याख्याप्रज्ञप्ति ( भगवतीसूत्र ) में अनुमतिका निषेध नहीं किया है तब फिर नियुक्ति (प्रत्याख्याननियुक्ति ) में अनुमतिका निषेध कैसे किया गया है ? इस शंकाके उत्तरमें कहा जा रहा है कि वहां उसका निषेध स्वविषय में किया गया है। अथवा सामान्य प्रत्याख्यानमें उसका निषेध किया गया है। अन्यत्र ( अविषयमें) कृत-कारितादिरूप तीन प्रकारके सावद्यका प्रत्याख्यान तीन प्रकारसे करने में कौन-सा दोष है ? कुछ भी दोष नहीं है। विवेचन-शंकाकारका अभिप्राय है कि व्याख्याप्रज्ञप्तिमें जब यह कहा गया है कि गृहस्थ कृत, कारित एवं अनुमत इस तीन प्रकारके सावद्यका प्रत्याख्यान मन, वचन व काय इन तीनोंसे करता है तब क्या कारण है जो प्रत्याख्याननियुक्तिमें अनुमतिका निषेध करते हुए दो ही प्रकारके १: अ भवतीत्यभिप्रायमाशंक्य । २. अ 'तत्र' नास्ति । ३. अ प्रतिषेधे । ४. अ तत्त जतो न दिटुं । ५. म एव परिणतसद्धांताभणित किं । ६. अ (विशिष्य I) नास्ति । कायसे—कृत, कारित व
SR No.022026
Book TitleSavay Pannatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhadrasuri, Balchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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