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________________ - ३२०] दितीयशिक्षापदप्ररूपणा १९१ इदमपि चातिचाररहितमनुपालनीयमिति अतस्तानाह वज्जिज्जा आणयणप्पओगपेसप्प ओगयं चेव । सदाणुरूववायं तह बहिया पुग्गलक्खेवं ॥३२०॥ प्रतिपन्नदेशावकाशिकः सन् वर्जयेत् । किम् ? आनयनप्रयोगं प्रेष्यप्रयोगं चैव शब्दानुपातं रूपानुपातं च तथा बहिर्वा पुद्गलक्षेपं वर्जयेदिति पदघटना। भावार्थस्तु इह विशिष्टावधिके भूदेशाभिग्रहे परतः स्वयं गमनायोगाद्योऽन्यः सचित्तादिद्रव्यानयने प्रयुज्यते संदेशकप्रदानादिना 'त्वयेदमानेयम्' इति अयमानयनप्रयोगः ॥१॥ तथा प्रेष्यप्रयोगः बलाद्विनियोज्यः प्रेष्यस्तस्य प्रयोगो यथाभिगृहीत. प्रविचारदेशव्यतिक्रमभयात् "त्वयावश्यमेव गत्वा मम गवाद्यानेयमिदं वा तत्र कर्तव्यमेव" एवंभूतः तथा शब्दानुपातः स्वगृहवृत्तिप्राकारादिव्यवच्छिन्नभूप्रदेशाभिग्रहे बहिः प्रयोजनोत्पत्तौ तत्र स्वयं गमनायोगावृत्ति-प्राकारप्रत्यासन्नतिनो बुद्धिपूर्वकमभ्युक्तासितादिकशब्दकरणेन समवसितकान् बोधयतः शब्दानुपातनमुच्चारणं तादग्येन परकीयश्रवणविवरमनुपतत्यसाविति तथा रूपानुपातो गृहीतदेशाबहिः प्रयोजनभावे शब्दमनुच्चारयत एव परेषां समीपानयनाथं स्वशरीररूपप्रदर्शन रूपानुपात: तथा बहिः पुद्गलक्षेपोऽभिगृहीतदेशाबहिःप्रयोजनभावे परेषां प्रबोधनाय लेष्ट्वादिक्षेपः प्रद्गलप्रक्षेप इति भावना देशावकाशिकमेतदर्थमभिगृह्यते मा भबहिर्गमनागमनादिव्यापारजनित: करनेसे प्रमादसे रहित होनेके कारण उसका चित्त भी निर्मल होता है। इसीलिए प्रयत्नपूर्वक उसके पालनके लिए यहां प्रेरणा की गयो है । 'देश' का अर्थ है दिग्व्रतमें गृहीत देशका एक अंश, उसमें अवकाश ( जाने की प्रवृत्ति ) होनेसे इस व्रतकी देशावकाशिक यह सार्थक संज्ञा समझना चाहिए ॥३१९|| आगे उसके निरतिचार पालन कराने के लिए अतिचारोंका निर्देश किया जाता है आनयनप्रयोग, प्रेष्यप्रयोग, शब्दानुपात, रूपानुपात और बलि पुद्गलक्षेप ये उसके पांच अतिचार हैं, जिनका परित्याग करना चाहिए। विवेचन-(१) आनयन-इस व्रतमें स्वीकृत प्रमाणके बाहर जाना निषिद्ध है, ऐसा समझकर परिमित देशके बाहरसे किसी सचित्त आदि वस्तुके लाने के लिए 'तुम्हें वहाँसे अमुक वस्तु लाना है' ऐसा सन्देश देकर जो उसे वहांसे मंगाया जाता है, यह उसका आनयन प्रयोग नामका प्रथम अतिचार है। (२) प्रेष्यप्रयोग-प्रेष्य नाम दास या सेवकका है। सीमित देशके बाहर जाना उचित न जानकर 'तू अमुक देशमें जाकर मेरी गाय आदिको ले आ' इस प्रकारसे जो देशावकाशिकव्रतीके द्वारा सेवकको अभीष्ट कार्यमें प्रयुक्त किया जाता है, इसका नाम प्रेष्यप्रयोग है। यह उसका दूसरा अतिचार है। (३) शब्दानुपात-मर्यादित देशके बाहर प्रयोजनके उपस्थित होनेपर वहां जाना निषिद्ध समझकर जो उक्त अपने गृह आदि मर्यादित क्षेत्रके भीतर स्थित रहता हुआ भी उसके बाहर अवस्थित जनोंके सम्बोधनार्थ जो खांसी आदि रूप शब्दोच्चारण किया जाता है उसे शब्दानुपात नामक तीसरा अतिचार जानना चाहिए। (४) रूपानुपात-स्वीकृत देशके बाहर प्रयोजनके उपस्थित होनेपर शब्दोच्चारण न करता हुआ भी देशावकाशिकव्रती जो मर्यादित क्षेत्रके बाहर स्थित किसीको समीपमें बुलानेके लिए अपने शरीरको दिखलाता है, इसका नाम रूपानुपात है। यह प्रकृतव्रतका चौथा अतिचार है। (५) मर्यादित क्षेत्रके बाहर प्रयोजनवश वहाँ अवस्थित अन्य किसीको प्रबोधित करनेके लिए जो १. अ पूर्वकामभ्युत्काशितादिशब्दः करणेन समवसितकां बोधयन् शब्दानुपातः मुच्चारणं तादृगेन ।
SR No.022026
Book TitleSavay Pannatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhadrasuri, Balchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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