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________________ - ११८] ___स्थूलप्राणातिपातप्रत्याख्याने शंका-समाधानम् ८३ वोसो। न चैतत्स्वमनीषिकया परिकल्पितम् । उक्तं च सूत्रकृताङ्गे-पाहावइसुयचोरगहणविमोक्खणयाएत्ति । एतत्संग्राहकं चेदं गाथात्रयम् देवीतुट्ठो राया ओरोहस्स निसि ऊसवपसाओ । घोसण नरनिग्गमणं छव्वणियसुयाणनिखेवो ॥११६॥ चारियकहिए वज्झा मोएइ पिया न मिल्लई राया। जिट्टमुयणे समस्स उ नाणुमई तस्स सेसेसु ॥११७॥ राया सड्ढो वणिया काया साहू य तेसि पियतुल्लो। मोयइ अविसेसेणं न मुयइ सो तस्स किं इत्थ ॥११८॥ एतद्गतार्थमिति न व्याख्यायते णवरमोरोहो अंतेउरं भन्नइ । सांप्रतमन्यद्वादस्थानकम् - भी वह दोष उस श्रावकका ही है, साधुका कुछ दोष नहीं है। यह वृत्तान्त कुछ हमारी बुद्धिके द्वारा कल्पित नहीं है, क्योंकि सूत्रकृतांगमें कहा भी है-गाहावइसुयचोरग्गहणविमोक्खण. याएत्ति। इस वृत्तान्तको संग्राहक ये तीन गाथाएं हैं राजा अपनी पटरानीपर सन्तुष्ट हुआ, इससे उसने उसकी इच्छानुसार रातमें उत्सव मनानेके विषयमें अन्तःपुरकी प्रसन्नता प्रकट की। इसके लिए उसने पुरुषोंके लिए नगरसे बाहर निकल जानेके विषयमें घोषणा करा दी। उस समय छह वणिकपुत्र नगरके बाहर नहीं निकल सके ॥११६॥ गुप्तचरोंके कहनेपर राजाने उनका वध करनेकी आज्ञा दे दी। तब पिता उनको छुड़ाता है, पर राजा उन्हें नहीं छोड़ता है। तब सब पुत्रोंके विषयमें समान भाव रखनेवाला सेठ ज्येष्ठ पुत्रको छुड़ाता है। इससे उसकी शेष पांच पुत्रोंके वधमें कुछ अनुमति नहीं रही ॥११७॥ राजा श्रावक जैसा है, वणिक्पुत्र जीवनिकाय जैसे हैं, साधु उनके पिता जैसा है। पिता समान रूपसे सबको छुड़ाना चाहता है, पर राजा नहीं छोड़ता है। इस परिस्थितिमें सेठका क्या दोष है ? अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार सेठ अपने सभी पुत्रोंको छुड़ाना चाहता है, पर उसके बहुत प्रार्थना करनेपर भी जब राजा उन्हें नहीं छोड़ता है तब सब पुत्रोंमें समबुद्धि होता हुआ भी वह एक बड़े पुत्रको हो छुड़ाता है। इससे यह नहीं कहा जा सकता कि उसको अन्य पुत्रोंके वध कराने में अनुमति रही है। ठीक इसी प्रकार साधु श्रावकसे स्थूल व सूक्ष्म सभी जीवोंके वधको छुड़ाना चाहता है, पर श्रावक जब समस्त प्राणियोंके वधके छोड़नेमें अपनी असमर्थता प्रकट करता है तब वह उससे स्थल प्राणियोंके ही वधका प्रत्याख्यान कराता है। इससे समस्त प्राणियों में समबुद्धि उस साधुके अन्य सूक्ष्म प्राणियोंके वधविषयक अनुमतिका प्रसंग कभी भी नहीं प्राप्त हो सकता ॥११८॥ ___अब जिनको उक्त त्रस प्राणियोंके घातका वह व्रत अभीष्ट नहीं है उनके अभिप्रायको स्पष्ट किया जाता है १. अ ण मेल्लई । २. अद्वादशकस्यानं ।
SR No.022026
Book TitleSavay Pannatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhadrasuri, Balchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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