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________________ -९३ ] सम्यक्त्वातिचारप्ररूपणा रन्ना सरियं मुक्का' य पव्वइया। परपाषण्डप्रशंसायां चाणक्यः। पाडलिपुत्ते चाणक्को, चंदगुत्तेण भिक्खुकाण वित्ती हरिया। ते तस्स धम्मं कहेंति । राया तुस्सई चाणक्कं पलोएइ , ण पसंसइ, तेण न देई। तेहि चाणक्कभज्जा उलग्गिया। तोए सो करणी गाहिउ । तेहि कहिए भणियं सुहासियं । रन्ना तं च अन्नं च दिन्नं। बोयदिवसे चाणक्को भणइ किस ते दिन्नं । राया भणइ तुमहिं पसंसियंति । सो भणइ ण मे पसंसियंति सधारंभपब्धता कहलोयं पत्तियावेति। पच्छाठिउँ केतिया एरिसंत्ति । परपाषंडसंस्तवे सौराष्ट्रश्रावकः। सो दुन्भिक्खे भिक्खुएहि समं पयट्टो भत्तं से देति । अन्नया विसूइयाए मओ। चोवरेण पच्छाइओ अविसुद्धोहिणा पासणं भिक्खुगाणं दिव्वबाहाए आहारदाणं । सावगाणं खिसा। जुगपहाणाण कहणं विराहियगुणो त्ति आलोयणं नमोकारपठणं पडिबोहो केत्तिया एरिसन्ति ॥१३॥ स्मरण हो गया। तब उसने उसे छोड़ दिया। इस प्रकारसे मत होकर उसने दोक्षा स्वीकार कर ली। यह उस मुनिनिन्दाका परिणाम था जो उसे कुछ समय तक दुर्गन्धा होकर कष्ट सहना पड़ा। परपाषण्ड प्रशंसामें चाणक्यका उदाहरण दिया गया है। उसकी कथा इस प्रकार हैलिपुत्र नगरमें चाणक्य नामका विद्वान् ब्राह्मण रहता था। राजा चन्द्रगुप्तने भिक्षओंकी आजीविकाको अपहृत कर लिया था। वे उसे धर्मका उपदेश करते थे। राजा सन्तुष्ट होकर चाणक्यकी ओर देखता था। परन्तु वह उनकी प्रशंसा नहीं करता था। इससे राजा उन्हें कुछ नहीं देता था। तब भिक्षुओंने चाणक्यकी पत्नीकी सेवाशुश्रूषा की..................... उनके द्वारा कहनेपर उसने कहा यह सुभाषित है तब राजाने उसे दिया और दूसरोंकी भी दिया। दूसरे दिन चाणक्यने राजासे पूछा कि उनको क्यों दिया। उत्तरमें राजाने कहा कि तुमने प्रशंसा की थी, इसलिए दिया है। इसपर चाणक्यने कहा कि मैंने प्रशंसा नहीं की। कारण यह कि जो सब प्रकारके आरम्भमें प्रवृत्त हैं वे लोगोंके विश्वासपात्र कैसे हो सकते हैं ? इससे उसे पश्चात्ताप हुआ। ऐसे कितने हैं ? ___ पांचवें पाषण्डसंस्तव अतिचारके विषय में सौराष्ट्र देशके श्रावकका उदाहरण दिया गया है। उसका कथानक इस प्रकार है-वह श्रावक दुभिक्षके समय भिक्षुओंके साथ प्रवृत्त होकर उन्हें भोजन देता था। पश्चात किसी अन्य समयमे उसे विसचिका रोग हो गया. जिससे होकर वह मृत्युको प्राप्त हो गया। तब उसे वस्त्रसे आच्छादित कर दिया गया। उस समय उसने अविशुद्ध (विभंग ) अवधिज्ञानके द्वारा भिक्षुओंको दिव्य ( देवता निर्मित) भोजनका दान, श्रावकोंकी निन्दा तथा युगप्रधान आचार्योंके कथनकी विराधनाको देखा। इससे वह आलोचनापूर्वक नमस्कार मन्त्रका पाठ करता हुआ प्रतिबोधको प्राप्त हुआ। ऐसे जन कितने हैं ? विरले ही होते हैं ।।९३॥ १. अ अन्नाया य वन्भोकेण रमंति रायाणं राणियाउ पुर्णत्ते वाहिये इयरी पुत्तं दाऊं वि गल्ला रन्ना सरीयं मुक्का। २. अत्तस्सइ । ३. अ पुलोयइ । ४. अ इ ति ण देइ । ५. भ भुज्जा उलग्गिया तीए । ६. अ सुहासीयं । ७. अ वीयदिन्नं से चाणक्को भणइ तब्भेहि पसंसीयंति । ८.५ पच्छाविउ केत्तिया । ९. अ दिव्ववाहाए दाणं । १०. अ आभोगणं ।
SR No.022026
Book TitleSavay Pannatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhadrasuri, Balchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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