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________________ ६८ श्रावकप्रज्ञप्तिः [९३ - चेव अरइंजणेइ, गब्मसाडणेहि' य ण सडइ। जाया समाणी उज्जि[ज्झि]या। सा गंधेण तं वनं वासेइ । सेणिओ तेण पदेसेण णिगच्छइ सामिणो वंदिउ। सो खंधावारो तीए गंधं ण सहइ । रन्ना पुच्छयं कि एयं । तेहिं कहियं दारियाए गंधो । गंतूणं दिट्ठा भणइ एस एवं पढम पुच्छ त्ति । गओ वंदित्ता पुच्छइ। तओ भगवया तीए उढाणपारियावणियया कहिया। तओ राया भणइ -कहिं एसा पच्चणुभविस्सइ सुहं वा दुवखं वा। सामी भणइ-एएण कालेण वेइयं, इयाणि सा तव चेव भज्जा भविस्सइ अग्गमाहसी। अट्ट संवच्छराणि जाय तुम्भं रममाणस्स पट्रीएहं सो लीलं काहिह, तंजाणिज्जसूर्वविता गओ। सा य अवगयगंधा आहीरेण गहिया, संवड्ढिया जोवणत्था जाया । कोमुइचारं मायाए समं आगया। अभओ सेणिओ य पच्छन्ना कोमुइचारं पेच्छंति । तीए दारियाए अंगफासेण सेणिओ य अजोववन्नो। नाममुदं दसिया। तीऐ बंधइ । अभयस्स कहियं नाममुद्दा हरिया, मग्गाहि। तेण मणुस्सा दारेहि बद्धेहि ठविया । एक्केकं माणुस्सं पलोएऊण णीणिज्जइ। सा दारिया दिट्ठा चोरित्ति गहिया परिणीया य। अन्नया य वस्सोकेण रमंति रायणं राणियाउ, पोत्तेण वाहिति । इयरी पोत्तं दाउं विलग्गा वह गर्भ में स्थित होतो हुई ही अरति ( खेद ) को उत्पन्न कर रही थी। गर्भ गिरानेवालोंके द्वारा प्रयत्न करनेपर भी वह गिरी नहीं । अन्तमें उत्पन्न होनेके साथ ही उसका परित्याग कर दिया गया। तब वह जिस वनमें स्थित थो उसे दुर्गन्धसे व्याप्त कर रही थी। एक समय राजा श्रेणिक भगवान महावीरको वन्दनाके लिए जाता हुआ वहाँसे निकला। उसका सैन्य समूह उसकी दुर्गन्ध ह सका। तब राजा श्रेणिकने पूछा किय ह दुर्गन्ध कहांसे आ रही है। उत्तरमें सैनिकोंने कहा कि यह महान् दुर्गन्ध एक लड़कीके शरीरसे आ रही है। तब उसने जाकर उस लड़कोको देखा और कहा कि भगवान् महावीरके समक्ष मेरा यही प्रथम प्रश्न रहेगा। तत्पश्चात् श्रेणिकने जाकर भगवान् महावीरकी वन्दना की व उनसे उस दुर्गन्धाके विषयमें प्रश्न किया। उत्तरमें भगवान्ने उसके परितापजनक कर्मबन्धको उत्पत्तिको कथा-पूर्वोक्त मुनिनिन्दाका वृत्त-क दिया। पश्चात् श्रेणिकने पुनः प्रश्न किया कि वह कितने काल तक सुख अथवा दुखका अनुभव करेगी। इसपर महावार स्वामीने कहा कि इतने कालमें उसने अपने उस पूर्वाजित कर्मका फल भोग लिया है। अब वह तुम्हारी पत्नी होकर पटरानी भी होगी। आठ वर्ष तुम्हें रमाते हुए तुम्हारे पृष्ठ भागपर हंसोलियोको (?) करेगी, इससे तुम जान सकोगे कि यह वही है। श्रेणिक महावीर स्वामीको वन्दना कर चला गया। तत्पश्चात् वह दुर्गन्धसे रहित हो गयी। तब उसे एक अहीर ( ग्वाला) ने ग्रहण करके उसका संवर्धन किया। इस प्रकारसे वह यौवन अवस्थाको प्राप्त हो गयी। एक समय वह शरत् पूणिमाके उत्सवको देखने के लिए माताके साथ आयी थी। उस समय अभयकुमार और राजा श्रेणिक छिपकर उस उत्सवको देख रहे थे। उस समय उस लड़कीके शरीरका स्पर्श हो जानेसे श्रेणिक उसके ऊपर आसक हो गया। तब उसने अपने नामसे अंकित अंगूठीको उसके वस्त्रसे बांध दी ओर अभयकुमारसे कहा कि मेरे नामकी अंगूठो खो गयो है, तुम उसको खोज करो। इसपर अभयकुमारने द्वारोंपर मनुष्योंको नियुक्त कर दिया। वे प्रत्येक मनुष्यको देखकर जाने देते थे। उन्हें वह लड़की मुंदरीके साथ दिखी, जिसे चोर समझकर पकड़ लिया। अन्तमें राजा श्रेणिकने उसके साथ विवाह कर लिया।................राजाको १. मु गब्भसाउणेहि। २. अ एसेव । ३. अ तउ भगवती तू उट्ठाणे पारिया वेणिया। ४. अ सा ते च भज्जा। ५. अ पट्ठीए हंसोलीण काहिए तं। ६. अ नासामुदं दसया तिए ।
SR No.022026
Book TitleSavay Pannatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhadrasuri, Balchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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