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________________ जं-जे . ___ शीलांगादि रथसंग्रहः ॥ १७ ॥ VODOORDARDOIGNORANG अखंतिमंतेण-अक्षमावान | अतवमतेण-तप रहित अकिंचण मंतेण-आर्कचन मे में अमहवतेण-मार्दवरहित एवा में असंजममतेण-असंजमवाव्य । वाळा बद्ध-बांध्यु अणज्जवंतेण-सरळता रहित | असच्चमंतेण-असत्यवाळा | अबंभमतेण-अब्रह्मवाळा पावं-पाप अमुत्तिमंतेण-निलेभतारहित | अस्सोयमंतेण-अशौचवाळा | .. " मा निंदारथ बहारनी गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ.... मोहवसेणं-मोहनावशथी | मे-में | राग-रागने विषे च-वळी मणसा-मनवडे बधं-बांध्यु दोसे-द्वषने विषे पंच-पांच देवभवे-देवना भवमा पावं-पाप विसय-विषय मण-मन्न : सद्द-शब्दादि पांच विषय अखंतिमंतेण-अक्षमावाळाएवा वयण-वचन सन्ना-मंज्ञा असण-अशनादि दस | तं-तेने तणुणि-काया जधम्मा-यतिर्म सन्नाए-संज्ञावडे निंदे-निंदुछु ॥१॥ गइ-गति सेवणा-आसेवना मोहे-मोहने | चउक-चतुका चारनोजथ्यो लोया-लोको ॥२॥ OGRRRRRRRROREOG ॥श्री निंदारथ ॥४॥ मोहवसेणं मणसा, देव भवे सद्द असण सन्नाए ॥ जं मे बद्धं पावं, अखंतिमंतेण तंनिंदे ॥१॥ मोहवशेन मनसा देव नवे शब्दाऽशन संझ्या ॥ यद्मया बई पापं, अदान्ति दमेण तन्निन्दे ॥१॥
SR No.022024
Book TitleShilangadi Rath Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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