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________________ ६।१५-१७] छठाँ अध्याय स्त्रीभावोंमें रुचि आदि स्त्रीवेदके आस्रवके कारण हैं। मन्द क्रोध, कुटिलता न होना, अभिमान न होना, निर्लोभ भाव, अल्पराग, स्वदारसन्तोष, ईर्ष्यारहित भाव, स्नान गन्ध माला आभरण आदिके प्रति आदर न होना आदि पुंवेदके आस्रवके कारण हैं। प्रचुर क्रोध मान माया लोभ, गुप्त इन्द्रियोंका विनाश, स्त्री पुरुषोंमें अनंगक्रीड़ाका व्यसन, शीलव्रत गुणधारी और दीक्षाधारी पुरुषोंको बिचकाना, परस्त्रीपर आक्रमण, तीव्र राग, अनाचार आदि नपुंसकवेदके आस्रव के कारण हैं। नरकायुके आस्रवके कारण बहारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः ॥१५॥ ६१-३. बहु अर्थात् बहुसंख्यक और बहुपरिमाणवाला, आरम्भ-हिंसकव्यापार । 'यह मेरा है मैं इसका स्वामी हूँ' इस प्रकारका ममत्व परिणाम परिग्रह है। बहुत आरम्भ और बहुपरिग्रह नरक आयुके आस्रवके कारण हैं। तात्पर्य यह फि-परिग्रहलोलुप व्यक्ति तीव्रतरकषायपरिणामवाले होते हैं और हिंसामें तत्पर होते हैं यह बहुत बार देखा गया है और सुना गया है। वे तीव्र अनुशयसे लोहेके तपे हुए गोलेकी तरह कषायज्वालाओंसे सन्तप्त हो क्रूरकर्मा होते हैं और नरक आयुका आस्रव करते हैं। मिथ्यादर्शन, अशिष्ट आचरण, उत्कृष्ट मान, पत्थरकी रेखाके समान क्रोध, तीव्र लोभ, अनुकम्पारहित परिणाम, परपरितापमें खुश होना, वध बन्धन आदिका अभिनिवेश, प्राण भूत सत्त्व और जीवोंकी सतत हिंसा करना, प्राणिवध, असत्यभाषणशीलता, परधनहरण, गुपचुप रागी चेष्टाएँ, मैथुनप्रवृत्ति, महाआरम्भ, इन्द्रियपरवशता, तीन कामभोगाभिलाष, निःशीलता, मित्तक भोजन, बद्धवैरता, करतापूर्वक रोना चिल्लाना, अनुग्रहरहित स्वभाव, यतिवर्ग में फूट पैदा करना, तीर्थंकरकी आसादना, कृष्णलेश्या रूप रौद्रपरिणाम, रौद्रभावपूर्वक मरण आदि नारक आयुके आरव हैं। तिर्यश्च आयुके आस्रव माया तैर्यग्योनस्य ॥१६॥ चारित्रमोहके उदयसे होनेवाला आत्माका कुटिल परिणाम तिर्यच आयुके आस्रवका कारण है। ___ मिथ्यात्वयुक्त अधर्मका उपदेश, बहुआरम्भ, बहुपरिग्रह, अतिवंचना, कूटकर्म, पृथिवीकी रेखाके समान रोष आदि, निःशीलता, शब्द और संकेत आदिसे परवंचनका षड्यन्त्र, छलप्रपंचकी रुचि, भेद उत्पन्न करना, अनर्थोदावन, वर्ण रस गन्ध आदिको विकृत करनेकी अभिरुचि, जातिकुलशीलसंदूषण, विसंवादरुचि, मिथ्याजीवित्व, सद्गणलोप, असद्गुणख्यापन, नीलकपोतलेश्यारूप परिणाम, आर्तध्यान, मरण समयमें आर्तरौद्रपरिणाम इत्यादि तिथंच आयुके आस्रवके कारण हैं। मनुष्य आयुके आस्रव __अल्पारम्भपरिग्रहत्वं मानुषस्य ॥१७॥ नरकायुके आस्रवके कारणोंसे विपरीत भाव अर्थात् अल्प आरम्भ और अल्प परिग्रह मनुष्यायुके आस्रवके कारण हैं। भदमिथ्यात्व, विनीत स्वभाव, प्रकृतिभद्रता, मार्दव आर्जव परिणाम, सुख समाचार कहनेकी रुचि, रेतकी रेखाके समान क्रोध आदि, सरल व्यवहार, अल्पारम्भ, अल्पपरिग्रह, सन्तोषसुख, हिंसाविरक्ति, दुष्टकार्योंसे निवृत्ति, स्वागततत्परता, कम बोलना, प्रकृतिमधुरता,
SR No.022021
Book TitleTattvarth Varttikam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkalankadev, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2009
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Tattvartha Sutra
File Size16 MB
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