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________________ 82/श्री दान-प्रदीप होगा, जिसमें ऐसी अद्भुत शक्ति है? ऐसा व्यक्ति तो अंतःपुर में भी उपद्रव कर सकता है।" इस आशंका से व्याकुल होते हुए राजा ने तुरन्त अभयकुमार को बुलाकर कहा-“रात्रि के समय इन दिव्य आम्रफलों को हरण करनेवाले चोर को तूं शीघ्र ही पकड़कर ला।" । यह सुनकर अभयकुमार स्वयं उस चोर की तलाश में उद्यम करते हुए नगर के बाहर के कुएँ, तालाब, उद्यानादि में घूमने लगा। पर किसी भी स्थान पर चोर का पता न लगा। उसकी तलाश फिर भी जारी थी। एक बार उसने अर्धरात्रि के समय किसी चौक पर नाटक देखने के लिए एकत्रित जनसमूह को देखा। वहां उसने लोगों से कहा-“हे लोगों! जब तक नट नाटक की तैयारी करते हैं, तब तक मैं तुमलोगों को एक कथा सुनाता हूं। तुम सावधान होकर सुनो किसी नगर में गोवर्धन नामक एक वणिक निर्धनों में शिरोमणि था। उसके यथा नाम तथा गुणयुक्त एक रूपवती नामक कन्या थी। पिता की गरीबी के कारण योग्य वर प्राप्त न होने के कारण वह उम्र में काफी बड़ी हो चुकी थी। अतः उसका नाम वृद्धकुमारी पड़ गया था। योग्य वर को प्राप्त करने के लिए वह सदैव कामदेव की पूजा किया करती थी और पूजा के लिए किसी उद्यान में से हमेशा पुष्पों की चोरी किया करती थी। एक बार उद्यानपालक ने उसे चोरी करते हुए देख लिया और पकड़कर उस पर मोहित होते हुए उससे काम की याचना करने लगा। तब उस कन्या ने कहा-“हे महाशय! मेरी कुमारावस्था का तूं विनाश मत कर।" यह सुनकर उद्यानपालक ने कहा-"हे सुंदरी! अगर तूं विवाह करने के बाद अपने पति के साथ भोग भोगने से पहले मेरे पास आने का वचन दे, तो मैं तुझे छोड़ सकता हूं। अन्यथा मैं तुझे किसी भी प्रकार से छोड़नेवाला नहीं हूं।" यह सुनकर कन्या ने उसके वचनों को स्वीकार कर लिया और वहां से मुक्त होकर अपने घर लौट गयी। कुछ समय बाद किसी योग्य श्रेष्ठीपुत्र के साथ उसका विवाह हुआ। रात्रि के समय वस्त्र और अलंकारों से शोभित होकर वह शयनकक्ष में गयी और सत्य-प्रतिज्ञ उस कन्या ने अपनी प्रतिज्ञा अपने पति को बतायी। उसकी वाणी में निश्चलता और निश्छलता देखकर उसके पति को अत्यन्त आश्चर्य हुआ। अतः उसने उसे उद्यान में जाने की अनुमति दे दी। वह कन्या भी उसी अर्धरात्रि में उद्यान की और चल पड़ी। मार्ग में उसे चोर मिले। उसने सारी घटना बताकर वापस लौट आने का वादा किया। चोरों को भी अत्यन्त आश्चर्य हुआ। उन्होंने भी उसे वापस आने का कहकर छोड़ दिया। आगे जाते हुए उसे छ: मास का क्षुधातुर राक्षस मिला। उसको भी उसी प्रकार वापस आने का वादा करके वह आगे
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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