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________________ 66 / श्री दान- प्रदीप जरा भी खेद धारण मत करना। ऐसा आचरण करने से ही तुम आचार्य पद संबंधी ऋण से मुक्त हो पाओगे और शासन भी विशाल वृद्धि को प्राप्त होगा ।" यह कहकर श्रीगुरुदेव सम्मेतशिखर पर जाकर सावधान चित्त से एक मास की अनशन रूपी निःसरणी पर चढ़कर सिद्धि रूपी महल को प्राप्त हुए । उसके बाद विजयाचार्य वाचनादि में प्रमाद - रहित बनकर पृथ्वी को पवित्र करते हुए अत्यधिक उन्नति को प्राप्त हुए । 'अपूर्व श्रुत को ग्रहण करने की इच्छा करते हुए साधुजन 2 अहंपूर्विकापूर्वक जैसे दातार को याचक घेर लेते हैं, उसी प्रकार विजयाचार्य को घेर लेते थे । अन्य 'प्रतीच्छक साधु भी उनके पास ज्ञान श्रवण करने की पिपासा लिए हुए आते थे। रत्नाकर समीप हो, तो कौन रत्नों को ग्रहण करने की इच्छा नहीं करेगा? जैसे व्यापार की दलाली करनेवाला क्षणभर भी विश्रान्ति नहीं लेता, वैसे ही पूरे दिन साधुओं को वाचना देते हुए आचार्य कभी भी क्षणमात्र भी विश्रान्ति प्राप्त नहीं कर पाते थे। रात्रि में भी साधुओं द्वारा किये जानेवाले सूत्रार्थ का चिंतवन, प्रश्न - उत्तरादि के कारण कभी भी सुखनिद्रा नहीं ले पाते थे । इस प्रकार एक बार कर्मोदय के कारण वे वाचनादि देते हुए खिन्नता को प्राप्त हो गये । अपने शरीर की छाया की तरह कर्म के विपाक का उल्लंघन करने में कौन समर्थ हो सकता है ? अतः उन्होंने मन में विचार किया - "ये मूर्ख यति श्रेष्ठ हैं, जो पढ़ने-पढ़ाने की क्रिया से विमुख होने के कारण सुखपूर्वक रहते हैं । कहा भी है कि : मूर्खत्वं हि सखे ममाभिरुचितं तस्मिन् यदष्टौ गुणा, निश्चिन्तो बहुभोजनोऽत्रपमना रात्रिंदिवाशायकः । कार्याकार्यविचारणान्धबधिरो मानापमाने समः, प्रायेणामयवर्जितो दृढ़वपुर्मूर्खः सुखं जीवति । । 1 । । अर्थ :- हे मित्र ! मुझे मूर्खता बहुत अच्छी लगती है, क्योंकि उसमें आठ गुण रहे हुए हैं- 1. मूर्ख मनुष्य चिन्ता रहित होते हैं, 2. अधिक भोजन करते हैं, 3. लज्जारहित होते हैं, 4. कार्याकार्य के विचार में अंध व बधिर के समान होते हैं, 5. मानापमान में समभावी होते हैं, 6. प्रायः रोगरहित होते हैं, 7. मजबूत शरीरवाले होते हैं और 8. इन्हीं कारणों से उनका जीवन सुखी होता है । 1. नवीन / पहले नहीं पढ़े हुए । 2. मैं पहले मैं पहले इस प्रकार त्वरापूर्वक । 3. दूसरे समुदाय के साथ अध्ययन हेतु आये हुए ।
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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