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________________ शास्त्रों में कहा गया है कि पृथ्वी का भूषण पुरुष है, पुरुष का भूषण उत्तम लक्ष्मी है और लक्ष्मी का भूषण दान है। इसी कारण से जैसे काव्य से कवि, बुद्धि से मंत्री, न्याय से राजा, शूरवीरता से सुभट, लज्जा से कुलपुत्र, सतीत्व से घर, शील से तप, कान्ति से सूर्य, ज्ञान से अध्यात्मी, वेग से अश्व एवं आँख से मुख शोभित होता है, वैसे ही दान से लक्ष्मी शोभित होती है। अतः अनेक प्रयासों से प्राप्त और प्राणों से भी ज्यादा महत्त्व रखनेवाली लक्ष्मी की एकमात्र उत्तम गति दान ही है। इसके अलावा तो लक्ष्मी उपाधि रूप ही है। / सभी प्रकार की दैविक व मानुषी समृद्धि एवं मोक्ष सम्पदा का उत्कृष्ट कारण धर्म ही है और उसके भी दान, शील, तप व भाव रूपी चार प्रकार होने पर भी दान धर्म को मुख्य कहने का कारण यह है कि बाकी तीन धर्म दान धर्म से ही स्थिरता को प्राप्त होते है। _यह ग्रंथ विशेष रूप से पठन, मनन और बार-बार मनन करने योग्य है। मनुष्य-जीवन के लिए सन्मार्गदर्शक, पिता की तरह सर्व-वांछित-प्रदाता, माता की तरह सर्व-पीड़ा को दूर करनेवाला, मित्र की तरह हर्षवर्द्धक यह धर्म महामंगलकारक कहलाता है। दानधर्म आत्मिक आनन्द उत्पन्न करनेवाला, मोक्षमार्ग को निकट लानेवाला, आत्मज्ञान की भावनाओं को स्फुरित करनेवाला, निर्मल सम्यक्त्वश्रावकत्व-परमात्मतत्त्व को प्रकट करनेवाला होने से यह ग्रंथ एक अपूर्व रचना है। MULTY GRAPHICS 1022) 23873227423884222
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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