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________________ 29/ श्री दान-प्रदीप स्त्रियों को अपनी सेवा करने से रोकते हुए स्वयं ही कुमार भोजनादि क्रियाओं में प्रवर्तित हुआ। बुद्धिमान मनुष्य को कौन ठग सकता है? उधर योग्य अवसर पर जिनपूजा, आवश्यक क्रिया, दान, स्नान और मानादि जो-जो क्रियाएँ एक स्त्री करती, वही दूसरी स्त्री भी करती। निमित्त विद्या के द्वारा भी कुमार उन दोनों स्त्रियों का अन्तर नहीं जान सका, क्योंकि छद्मस्थों का ज्ञान विचित्र प्रकार का होता है। वह सर्व विषयों में अस्खलित नहीं होता। तब खेदखिन्न होते हुए कुमार ने नगर में यह उद्घोषणा करवायी कि “इन दोनों स्त्रियों के भेद को जो कोई बतायेगा, उसे मैं एक करोड़ स्वर्णमुद्रा दूंगा।" यह सुनकर स्वयं को बुद्धिनिधान माननेवाले हजारों विद्वान स्वर्ण पाने की इच्छा से अहंपूर्वक वहां आये। उन्होंने प्रयत्नपूर्वक सैकड़ों उपाय किये, पर उनके सारे उपय अवकेशी नामक वन्ध्य वृक्ष की तरह निष्फल हुए। तब कुमार ने एक बार फिर से अपनी बुद्धि से उद्यम करना प्रारम्भ किया। छोटे-2 छिद्रोंवाली एक पेटी में उन दोनों को बन्द करके कहा कि "तुम दोनों को एक दिव्य करना है। जो असली मदनमंजरी है, वह सत्य के प्रभाव से उस पेटी में से बाहर आ जायगी और जो उसके अन्दर से बाहर नहीं निकल पायेगी, वह नकली है।" यह सुनकर असली मदनमंजरी के नेत्र दुःखभरे अश्रुओं से व्याप्त हो गये। उसने गद्गद् स्वर में स्खलित वाणी से कहा-"हे स्वामी! इन सूक्ष्म छिद्रों से मैं मानवी मदनमंजरी कैसे बाहर निकल सकती हूं? यह शक्ति तो देवताओं की हो सकती है।" ____ माया-कपट के नाटक में निपुण उस नकली मदनमंजरी ने भी दुःख प्रकट करते हुए वही शब्द दोहराये। तब दयालू कुमार ने उन दोनों को ही पेटी से बाहर निकाल लिया, क्योंकि महापुरुषों को दुष्टों पर भी अत्यन्त करुणा-भाव होता है। _ 'मुझे परस्त्रीगमन का पाप न लगे इस शंका को धारण करते हुए कुमार उन दोनों स्त्रियों से दूर रहने लगा। पर वे दोनों स्त्रियाँ दिन-रात विलाप करने लगीं-"हे नाथ! मुझ अनाथ निरपराधी का आप क्यों त्याग करते हैं?" । उन दोनों के अन्तर को नहीं समझ सकने के कारण हृदय में खेद धारण करते हुए कुमार भी विचार करने लगा-'अपार पौरुष व तेज को धारण करनेवाले मुझपर यह कैसी विपत्ति आ पड़ी है? ऐसी विषम स्थिति में अगर मैं अपने माता-पिता के पास जाऊँगा, तो हर्ष तो बहुत दूर रहा, उनको दुःख ही ज्यादा होगा। पर यदि इसी अवस्था में मैं गाँव-2 नगर-2 पृथ्वी पर ही भ्रमण करता रहा, तो दुर्जन मेरा उपहास करेंगे कि इसको पृथ्वी पर
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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