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________________ 315 / श्री दान- प्रदीप देने में आदरबुद्धि रखनी चाहिए, जिससे सर्व प्रकार की सुख-सम्पत्ति शीघ्रतापूर्वक स्वयं ही प्राप्त हो जाय ।" ।। इति नवम प्रकाश ।। दशम प्रकाश ममतारहित होते हुए भी दयार्द्र हृदय से युक्त श्रीमहावीरस्वामी ने दरिद्र ब्राह्मण को देवदूष्य वस्त्र प्रदान किया था, वे प्रभु भव्य प्राणियों को सुख प्रदान करें । अब उपष्टम्भ दान में रहे हुए और पुण्य को पुष्ट करनेवाला वस्त्रदान नामक सातवाँ भेद कहा जाता है। गृहस्थ को अत्यधिक भावपूर्वक साधुधर्म के उपकार के लिए मुनियों को कल्पनीय शुद्ध वस्त्र का दान देना चाहिए। यहां कोई शंका करते हैं कि वस्त्र तो अपरिग्रह व्रत का बाधक है, अतः सर्वदा परिग्रह के त्यागी यतियों को वस्त्रदान नहीं करना चाहिए। पर यह शंका योग्य नहीं है, क्योंकि संयम की रक्षा के लिए साधुओं को वस्त्र रखने की अनुज्ञा दी हुई है। इस विषय में चौदह पूर्वधारी श्रीभद्रबाहुस्वामी के द्वारा रची गयी ओघनिर्युक्ति में इस प्रकार कहा गया है : पत्तं पत्ताबंधो, पायद्ववणं च पायकेसरिआ । पडलाइं रयत्ताणं, गुच्छउ पायनिज्जोगो ||1|| तिन्नेव य पच्छागा, रयहरणं चेव होइ मुहपत्ती । एसो दुवालसविहो, उवही जिणकप्पिआणं तु । । 2 ।। एए चेव दुवालस, मत्तग अइरेगचोलपट्टो अ । एसो उ चउदसविहो, उवही पुण थेरकप्पम्मि । 3 ।। जिणा बारसरूवाणि, थेरा चउदसरूविणो । अज्जाणं पण्णवीसं तु, अउ उड्डुं उवग्गहो | 4 || भावार्थ :- पात्र झोली, जिस पर पात्र रखे जाय - वह ऊनी वस्त्र, पात्र का प्रतिलेखन करनेवाली चरवली, पडला, पात्र को लपेटने का वस्त्र और गुच्छ अर्थात् पात्र पर चढ़ाने का ऊनी वस्त्र - सात पात्र - संबंधी उपकरण हैं। तीन पछेवड़ी (गोचरी के लिए जाते समय शरीर
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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