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________________ 259/श्री दान-प्रदीप टुकड़े-2 करके मानो चारों दिशाओं को बलि प्रदान करने के बहाने से उसके शरीर के टुकड़ों को चारों दिशाओं में उछाल दिया। पापकर्म करनेवालों की मृत्यु इसी प्रकार ही होती है। फिर बिजली के उद्योत की तरह वह हाथी अदृश्य हो गया। यह देखकर उन कुमारियों के साथ-साथ राजा भी आश्चर्य को प्राप्त हुआ। तभी अपनी पुत्रियों को खोजते-2 वह महाबल राजा भी अकस्मात् वहां आ गया। अपने पिता को देखकर कन्याएँ अत्यन्त हर्षित हुईं। उन्हें प्रणाम करके कहा-"भस्म हुई हम कन्याओं को इन्हीं महापुरुष ने जीवित बनाया है तथा हमारा हरण करनेवाले उस मातंग विद्याधर का अभी-2 किसी मातंग (हाथी) ने हनन किया है।" ___ यह सुनकर हर्षित होते हुए उस विद्याधर राजा ने रत्नपाल राजा से कहा-“वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणि में रत्नसार नामक नगर का मैं स्वामी हूं| महाबल नामक खेचर मैं इन कन्याओं का पिता हूं। मैंने एक बार किसी नैमित्तिक से पूछा था कि मेरी पुत्रियों के पति कौन होंगे? तब उसने स्पष्ट रूप से कहा था कि मातंग खेचर के द्वारा हरण करके भस्मीभूत की हुई तुम्हारी कन्याओं को अकस्मात् आकर जो बुद्धिमान पुरुष जीवित करेगा और जिसकी सहायता करने के लिए कोई हाथी आकर उस मातंग खेचर को मारेगा, वह तुम्हारी इन दोनों पुत्रियों का स्वामी बनेगा। उस निमित्तक के वे समस्त वचन कन्याओं पुण्य के द्वारा आज सत्य सिद्ध हुए हैं। अतः हे उत्तम पुरुष! मुझ पर कृपा करते हुए मेरे नगर को शीघ्र ही पवित्र बनायें, जिससे मैं अपनी कन्याओं का आपके साथ विवाह करके मेरे हर्ष को पूर्ण कर सकूँ।" तभी किसी देव ने प्रकट होकर कहा-“हे राजन्! मैं वही आपका मित्र श्रावक देव हूं, जिसने मंत्री के साथ युद्ध में आपकी सहायता की थी। अभी भी हाथी के बहाने से मैं ही आपको इन कन्याओं के साथ विवाह हेतु यहां लेकर आया हूं। आपके शत्रु का हनन भी मैंने ही किया है। यह दिव्य रस से भरा हुआ तुम्बड़ा भी आप ही ग्रहण करें। इस तुम्बड़े का वृत्तान्त भी अद्भुत है। आप ध्यानपूर्वक सुनें इस तुम्बड़े को पाने के लिए उस मातंग विद्याधर ने चौबीस वर्ष तक कन्द, मूल और फल का आहार करके दुष्कर तप किया। हमेशा शीर्षासन करके दो प्रहर तक मंत्र का ध्यान किया। हमेशा महामूल्यवान वस्तुओं का अग्नि में होम किया। इस प्रकार की आराधना करके नागेन्द्र के पास से उसने यह रस प्राप्त किया। इसका प्रभाव तीनों लोक में न समाय-ऐसा है। इसकी एक बूंद के स्पर्श से करोड़ों पल के वजनवाला लोहा उच्च कोटि का स्वर्ण बन जाता है। इसके द्वारा असाध्य बीमारियाँ भी ठीक हो जाती हैं। यह अठारह जाति के
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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