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________________ 258/श्री दान-प्रदीप राजा हाथी पर चढ़ गया। राजा के हाथी पर बैठते ही वह आकश में उड़कर सभी के देखते ही देखते अदृश्य हो गया। ___ "यह हाथी मुझे किसी अन्य द्वीप में न ले जाय"-यह सोचकर नीचे कहीं सरोवर देखकर राजा ने हाथी पर से झंपापात किया और फिर तैरकर सरोवर से बाहर आ गया। फिर राजा चारों तरफ देखने लगा। तभी सरोवर के किनारे राजा को तिमंजिला एक दिव्य महल दिखायी दिया। कौतुक के कारण राजा महल में गया, तो एक मनोहर पलंग पर राख के दो ढेर देखे। वहीं ऊपर लटकते हुए छींके पर लटका हुआ रस का एक तुम्बड़ा भी देखा । कौतुकपूर्ण होकर राजा ने उस तुम्बड़ें को उत्कण्ठापूर्वक ग्रहण किया। संभ्रमित होकर ग्रहण करते हुए उसमें से कुछ रस उन दोनों राख के ढेर पर गिर गया और उस ढेर की जगह तुरन्त ही दो सुन्दर व दिव्य कन्याएँ उठकर खड़ी हो गयीं। "अहो! इस रस का माहात्म्य तो अचिन्त्य है! और ये दोनों स्त्रियाँ कौन हैं?"-ऐसा विचार करते हुए विस्मय से विकस्वर राजा ने उनसे पूछा-"आप कौन हैं? यहां जंगल के मध्य महल कैसे? और रस का यह तुम्बड़ा भी यहां कैसे?" इस प्रकार राजा की वाणी का श्रवण करके आनन्दित होते हुए उन कन्याओं में से ज्येष्ठ कन्या ने कहा-"हम महाबल नामक विद्याधर राजा की कन्याएँ हैं। मेरा नाम पत्रवल्ली और इसका नाम मोहवल्ली है। एक बार हमलोग महल के गवाक्ष में बैठे हुए थे, उस समय किसी मातंग नामक विद्याधर ने हमसे विवाह करने की इच्छा के कारण चुपचाप हमारा हरण कर लिया और हमें इस शून्य अरण्य में लाकर अपनी विद्या से इस तिमंजिले महल की रचना करके हमको यहां रखा है। वह खेचर अगर कहीं बाहर जाता है, तो अपनी विद्या से हमें भस्म बना देता है और वापस आने पर तुम्बड़े के रस द्वारा हमें पुनः जीवित कर देता है। वह अभी हमें भस्म करके बाहर गया है और विवाह की सामग्री लेकर तुरन्त ही वापस आनेवाला है। आप आकृति और प्रकृति से कोई उत्तम पुरुष प्रतीत होते हैं। अतः चण्डालों में भी उग्र चाण्डालों के समान उस मातंग से आप हमें मुक्त करवायें।" यह सुनकर राजा उसकी मधुर वाणी से और पूर्वभव के प्रेम के उदय से उनमें अनुरक्त हो गया। उनके साथ जैसे ही धैर्यपूर्वक वार्तालाप करने के लिए उद्यत हुआ, तभी वह खेचर हाथों में पाणिग्रहण की सामग्री लेकर शीघ्रता में वहां आया। तभी उसी गजेन्द्र ने (जिसने राजा का अपहरण किया था) वहां आकर उस विद्याधर को अपनी सूंड के द्वारा गेंद की तरह आकाश में उछाला और नीचे गिरते हुए उसे अपने नुकीले दाँतों पर धारण करके उसके
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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