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________________ 250 / श्री दान- प्रदीप महिमा के द्वारा क्या-क्या नहीं कर सकती? जल को स्थल बना सकती हैं, स्थल को जल बना सकती हैं, चतुरंगिणी सेना को लीलामात्र में स्तम्भित कर सकती हैं, जाज्ज्वल्यमान ज्वाला से युक्त अग्नि को भी शीतल बना सकती हैं, अनेक भूत-प्रेतादि को क्रौंचपक्षी की तरह बंधन से बांध सकती हैं, शत्रुओं के द्वारा की गयी सर्व आपत्ति को तत्काल संपत्ति के रूप में कर सकती हैं, रोष को प्राप्त सती स्त्रियाँ शाप के द्वारा राजा को भी उसके सप्तांग राज्य सहित तत्काल भस्मसात् कर सकती हैं। इस पर एक दृष्टान्त है। आप ध्यानपूर्वक सुनें 'रत्नपुर नामक नगर में पुण्यप्रवाह को वहन करनेवाला धनसार नामक सार्थवाह था । उसके धनश्री नामक प्रिया थी । वह स्वयं तो मूर्त्तिमान पुण्यलक्ष्मी की तरह शोभित होती थी एवं अपनी आत्मा को और कुल को उज्ज्वल गुणों के द्वारा शोभित करती थी । उसका अद्भुत रूप और शील मणियों से शोभित स्वर्णालंकारों की उपमा का पोषण करता था । एक बार उसको प्रत्यक्ष लक्ष्मी की तरह अपने आवास के झरोखे में बैठा हुआ देखकर आकाश में गमन करते हुए किसी दुष्ट बुद्धियुक्त विद्याधर का मन मोहित हो गया । अतः वह तुरन्त उसके पास आकर प्रकट रीति से खुशामद से युक्त वचनों के द्वारा प्रार्थना करने लगा। कामान्ध पुरुष क्या-क्या निन्द्य कर्म नहीं करता? क्या-क्या नहीं बोलता? पर शील को प्राणों से भी ज्यादा माननेवाली उसने उसके वचन को मान्य नहीं किया । जो संकट के समय भी शील का लोप नहीं करती, उसे ही सती कहा जाता है। उसके नहीं मानने पर वह विद्याधर अपनी विद्या के बल से उस पर उपद्रव करने के लिए तैयार हो गया । कामदेव के द्वारा उन्मत्त हुआ पुरुष मदिरा से उन्मत्त हुए पुरुष से जरा भी कम नहीं होता। उसके उपद्रवों को देखकर शील भंग हो जाने के डर से उस सती ने क्रोधित होकर उसे श्राप दिया- "रे अधम ! तूं शीघ्र ही सप्तांगवाले राज्य से भ्रष्ट होगा ।" तब उसने कहा-“मुझ विद्याधर को तेरा श्राप फलित नहीं होगा, क्योंकि गारुड़ी को सर्प के क्रोध से कोई डर नहीं होता । पर हे स्त्री ! अभी दिन है । अतः अभी तो मैं जा रहा हूं। पर रात्रि में फिर आऊँगा और तुम्हें जबरन पकड़कर ले जाऊँगा।” यह सुनकर शील की अचिन्त्य महिमा से शोभित वह सती भी बोली - " मेरे वचनों से सूर्य का अस्त ही नहीं होगा। यह तूं निश्चय जान ले।" उसके वचनों की अनसुनी करते हुए वह विद्याधर अपने नगर की तरफ चला गया । उसी समय उसका घर अग्नि में भस्मसात् हो गया । अकस्मात् व्याधि से उसके पुत्र का भी मरण हो गया। उसका हस्ती - सैन्य, अश्व - सैन्य आदि भी मरकी के रोग से मरण को प्राप्त
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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