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________________ 12/श्री दान-प्रदीप श्री दानप्रदीप जिनागम रूपी अग्नि में से विविध प्रकार के अर्थ रूपी तेज को ग्रहण करके जिनशासन रूपी महल में दान रूपी दीप को प्रकट करनेवाला अपूर्व ग्रंथ * काव्येनैव कविर्धियेव सचिवो न्यायेन भूमिधवः शौर्येणैव भटो ह्रियेव कुलजः सत्येव गेहस्थितिः । शीलेनैव तपस्त्विषेव सविता चित्त्येव अध्यात्मवान् वेगेनैव हयो दृशैव वदनं दानेन लक्ष्मीस्तथा। 1|| * * ॐ अर्थ :-जैसे काव्य से कवि, बुद्धि से मंत्री, न्याय से राजा, शौर्य से सुभट, लज्जा से कुलपुत्र, सती-स्त्री से घर की स्थिति, शील से तप, कान्ति से सूर्य, ज्ञान । से अध्यात्मी पुरुष, वेग से अश्व और नेत्र से मुख शोभित होता है, वैसे ही दान से लक्ष्मी शोभित होती है। ॐ
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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