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________________ 189 / श्री दान- प्रदीप उधर उस वानर को पकड़कर कुछ नटों ने उसे नाट्य सिखाया। फिर एक दिन उसी राजा के पास नटों ने नृत्य प्रारम्भ किया। उस वानर ने राजा के समक्ष अद्भुत नृत्य किया । पर तभी राजा के पास अर्ध सिंहासन पर बैठी हुई अपनी प्रिया को देखकर वह वानर रोने लगा। पूर्व के सुख का स्मरण करते हुए बार-बार अश्रुपात करते हुए उस वानर ने अत्यन्त पश्चात्ताप किया। वाणीकुशल रानी ने भी उसको पहचान लिया और कहा - "हे कपि ! स्वयं के द्वारा बोये हुए अविवेक रूपी वृक्ष के फल को भोगो।" राजादि ने भी उसके द्वारा सुनाये गये वृत्तान्त को सुनकर अत्यन्त आश्चर्य प्राप्त किया और मानने लगे कि सर्व आपत्तियों का मूल असन्तोष है। अतः जो मनुष्य इस भव में कामों को प्राप्त करने के बावजूद भी परलोक में अधिक समृद्धि प्राप्त करने के लिए क्लेशों को सहन करता है, वह वानर के समान पीछे से अत्यन्त पश्चात्ताप को प्राप्त होता है। अतः सर्व पुरुषार्थों में काम पुरुषार्थ ही प्रधानता के साथ प्रथम स्थान को प्राप्त होता है- यह सिद्ध होता है । " प्रथम पाये की इस बात को सुनकर बोलने में चतुर द्वितीय पाये ने कहा- "हे वादी ! तुमने जो कुछ भी कहा, वह युक्तियुक्त नहीं है, क्योंकि सर्व पुरुषार्थों में अर्थ की प्रधानता ही सिद्ध है। काम का भी मूल कारण अर्थ ही है । अर्थ बिना काम असंभव है। काम के इच्छुक लोग अर्थ के लिए क्लेश पाते हुए देखे जाते हैं । समग्र सुख का हेतु वित्त ही घटित होता है, क्योंकि वित्त को देखने मात्र से ही बालक का मन भी उल्लसित हो जाता है । हे वादी ! तुमने अर्थ का योग होने पर भी जो मम्मण सेठ के दुःख का वर्णन किया, वह भी अयोग्य ही है, क्योंकि वह दुःख उसकी कृपणता के कारण था । अर्थ के कारण उसे कोई दुःख नहीं था। धन के द्वारा बड़े-बड़े घोड़े, अक्षय भोग, सुन्दर सौभाग्ययुक्त नारियाँ, गर्जना करते हुए गजेन्द्र श्रेष्ठ वस्त्र और अत्यधिक भक्ति करनेवाले चाकर प्राप्त होते हैं। धन के द्वारा सभी मनुष्य स्वजन बन जाते हैं। समग्र शत्रु भी मित्र बन जाते हैं। राजा की अत्यन्त कृपा भी प्राप्त होती है। धन के द्वारा कौन वश में नहीं होता? वैभव के द्वारा नीच मनुष्य भी उच्चता को प्राप्त होता है और अकुलीन भी कुलीनता को प्राप्त कर लेता है । लघुतावाला मनुष्य भी से गौरवता को प्राप्त कर लेता है। वैभव के द्वारा क्या -2 शुभ नहीं होता? जो ज्ञान होते वृद्ध हैं, तप से वृद्ध होते हैं, स्वजनता से वृद्ध होते हैं और वय से वृद्ध होते हैं, वे सभी धन से वृद्ध कहलानेवाले पुरुषों के कथनानुसार ही चलते हैं अर्थात् उनके गुलाम बनकर रहते हैं - यह आश्चर्य की बात है । धनवान को अगर वाणी का दोष होने के कारण वह बोल नहीं पाता, तो उसे परिमितभाषी कहा जाता है । अगर उसमें चपलता का दोष हो, तो उसे उद्यमी कहा जाता है। अगर वह आलसी हो, तो उसे स्थिरतायुक्त कहा जाता है। उसकी जड़ता
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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