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________________ 115/श्री दान-प्रदीप बाज पक्षी की तरह सार्थ के बीच में घुस गये और लूटपाट करने लगे। उनमें से शंख सहित दस जनों को पकड़कर व बांधकर पल्ली में ले जाकर अपने पल्लीपति को सौंपा। उन दस जनों को देखकर पल्लीपति मेघनाद ने कहा-"जब तक ऐसा ही 11वां मनुष्य न मिले, तब तक इन दसों को सुरक्षित स्थान पर रखो, क्योंकि भूत के द्वारा उपद्रव को प्राप्त मेरे ज्येष्ठ पुत्र की नीरोगता के लिए मैंने चण्डीदेवी के आगे 11 मनुष्यों के बलिदान की मनौती मानी है।" उसके बाद भीलों ने उन दसों को पशुओं की तरह पिंजरे में बन्द कर दिया। कुछ समय बाद भील 11वें मनुष्य को भी पकड़कर ले आये। फिर उन सभी को स्नान करवाया, श्वेत वस्त्र पहनाये और यमराज के घर के समान चण्डिका देवी के मन्दिर में ले गये। पल्लीपति भी वहां आया और उसने कहा-“हे मनुष्यों! तुम्हें जिस किसी का स्मरण करना है, कर लो। आज मैं इस देवी के सामने तुम सभी की बलि चढ़ाऊँगा।" ऐसा कहकर उनको मारने की भावना से जैसे ही उसने तलवार हाथ में ली, तभी किसी सेवक ने आकर कहा-“हे स्वामी! जल्दी आइए। आपका पुत्र भूत के द्वारा अत्यन्त पीड़ित हो रहा है।" यह सुनकर पल्लीपति उन सभी को वहीं छोड़कर तुरन्त अपने पुत्र के पास गया। उस पल्लीपति ने अपने पुत्र की स्वस्थता के लिए जो-जो औषधि की, उसका गुण होना तो दूर रहा, ईंधन डालने पर अग्नि के भभकने की तरह उसकी व्याधि और ज्यादा वृद्धि को प्राप्त हो रही थी। वह उपाय कर-करके थक गया। अब क्या होगा? इस आशंका से उसका हृदय चिन्तित हो उठा। उधर चण्डी के मन्दिर में रहे हुए शंख ने अतुल्य महिमायुक्त नवकार मंत्र का स्मरण करते हुए पल्लीपति के किसी प्रधान पुरुष को कहा-"अगर तुम मुझे मालिक के पुत्र के पास ले जाओ, तो शायद मैं कुछ चमत्कार दिखा सकू।" यह सुनकर उसने तुरन्त पल्लीपति को संदेश भिजवाया। पल्लीपति ने तुरन्त उसे बुलवाया और कहा-“हे भद्र! तुम्हारी सौम्य आकृति ही तुम्हारी कला-कुशलता को दर्शा रही है। मणि की बाह्य आकृति क्या उसके मूल्य का दिग्दर्शन नहीं कराती? हे महापुरुष! मेरे पुत्र को स्वस्थ कर दो। यहां किसी चीज की कोई कमी नहीं है। तुम्हे हवनादि के लिए कस्तूरी आदि जो कुछ भी चाहिए, वह सब तुम्हें मिल जायगा।" तब शंख ने कहा-"कोई उतावली मत करें। बाह्य वस्तुएँ इस व्याधि को शमित नहीं कर सकतीं।" ऐसा कहकर शंख ने अपार महिमा के सागर रूप नमस्कार मंत्र का पवित्र मन द्वारा
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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