SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 99/श्री दान-प्रदीप नामक आचार्य विराज रहे थे। उनके रोहगुप्त नामक एक शिष्य था। वह इसी नगरी के समीप के किसी छोटे ग्राम में रहता था। उसके वचन दूषणमुक्त थे और सभी प्रकार के शास्त्रों में उसकी बुद्धि अस्खलित थी। बृहस्पति भी उसके साथ वाद करने में अपने पराभव की संभावना को देखते हुए भयभ्रान्त होकर निरन्तर आकाश में भ्रमण करता था। अपने गुरु को वन्दन करने के लिए वह प्रायः हमेशा ही अपने ग्राम से उस नगरी में आया करता था। शिष्य को गुरु के प्रति निःसीम प्रीति होती है। एक बार उस नगरी में तीक्ष्ण बुद्धि से संपन्न कोई परिव्राजक वादी आया। वह अपने ज्ञान के सामने सभी को नगण्य मानता था। ___ "न समाय, ऐसी विद्याओं के द्वारा यह मेरा पेट फट जाने को व्याकुल है"-इस प्रकार कहते हुए वह अपने पेट पर लोहे का बड़ा-सा पट्टा बांधकर घूमता था। "पूरे जम्बूद्वीप में विद्या के द्वारा मेरी बराबरी करनेवाला कोई नहीं है"-ऐसा बताने के लिए वह हाथ में जम्बूवृक्ष की डाली रखता था। ऐसा करने के कारण वह सर्वत्र पोट्टशाल नाम से प्रख्यात हो गया था। जो जैसी चेष्टा करता है, उसे लोग प्रायः करके उसी नाम से पुकारते हैं। उसने आते ही उस नगरी में पटह बजवाया कि “क्या इस नगरी में कोई ऐसा वादी है, जो मेरे साथ वाद कर सके?" __ यह सुनकर रोहगुप्त मुनि ने उस पटह का निषेध किया और कहा कि सिंह की तरह उस हाथी को जीतने में मैं समर्थ हूं। फिर उसने गुरु के पास आकर सर्व वृत्तान्त बताया। तब श्रीगुरु ने फरमाया-"हे वत्स! तुमने यह ठीक नहीं किया, क्योंकि वह विद्याओं के कारण अत्यधिक बलवान है। वह वादी अपनी विद्याओं के द्वारा सैकड़ों महा-भयंकर बिच्छु, सर्प, -चूहे, हरिण, शूकर, कौए व चकली आदि उत्पन्न कर सकता है।" यह सुनकर शिष्य ने गुरु से कहा-"अब पीछे हटने का कोई उपाय नहीं है।" अन्य कोई उपाय न देखकर गुरु ने रोहगुप्त से कहा-“हे वत्स! दुष्ट वादी के द्वारा उपद्रव किये जाने पर उन्हें नष्ट करने के लिए तूं कार्यसाधक इन सात पाठसिद्ध विद्याओं को ग्रहण कर-मोर, नेवला, बिलाव, बाघ, सिंह, उल्लू और बाज । इन सात विद्याओं के द्वारा शत्रु की विद्या का नाश करने के लिए सैकड़ों मयूरादि उत्पन्न होंगे। कदाचित् इन सात विद्याओं के अलावा वह और कोई विकुर्वणा करे, तो यह रजोहरण तूं अपने मस्तक पर घुमा लेना। इससे तूं इन्द्र के द्वारा भी नहीं जीता जा सकेगा। सर्वत्र तेरी विजय होगी।" उसके बाद रोहगुप्त उन सातों विद्याओं को व रजोहरण को ग्रहण करके मानो पुरुष रूप में सरस्वती देवी ही हो, इस प्रकार राजसभा में आया। उस प्रतिवादी को आक्षेपपूर्वक
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy