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________________ छपरहा है ! ज्योतिषशास्त्रका अपूर्वग्रंथ !! छपारहा है ! (जैनाचार्य महामहोपाध्याय श्रीमेघविजयगणिकृत) - मेघमहोदय याने वर्षप्रबोध यह ग्रन्थ बनारस (काशी), जयपुर आदिके प्रसिद्ध वि. द्वानों में प्रतिष्ठा पाया हुआ और जयपुरके सुप्रसिद्ध राज्यज्योतिषीयों के द्वारा संशोधित है। इसमें-उत्पातप्रकरण, पद्मिनीचक्र, कर्पूरचक्र, मंडल प्रकरण, वायु मंडलके अनुसार देशमें शुभाशुभ, वर्षा को बोलानेका और विदा करानेका मंत्र यंत्र, वृषभादि साठ संवत्सरोंका फल, नवग्रहका नक्षत्र और राशि परसे तथा वक्री होना, उदय और अस्त होना इन परसे शुभाशुभ फल, वर्षके विश्वा, अयन, मास, ऋतु, पक्ष, दिन, ग्रहण और अधिकमास इनके फल, वर्षाधिपति, वर्षमंत्री, सस्पाधिपति, मेघाधिपति, रसाधिपति, नीरसाधिपति, आप्रिवेश और वर्ष जन्मलग्न इनके फल, अगस्तिके उदय परसे, विजली और बादल परसे वर्षाका ज्ञान, वर्षाके गर्भका वर्णन और इसपरसे वर्षाका ज्ञान, संक्रान्ति के विचार तथा फल, दरेक पूर्णिमा और अमावास्या तथा रोहिणीचक्र और स्वातियोग इनके फल, वर्षाके शकुन, कोआ और गौके शब्द परसे तथा पुष्य और लतापरसे शुभाशुभ ज्ञान, सर्वतोभद्र चक्र और अघकांड जिससे समस्त देशके शुभाशुभ, सब प्रकारके धान्य, सोना चांदी लोहा आदि धातु, कपास, रूई और सब प्रकारकी क्रयाणक वस्तु इन सबका तेज होना या मंदा होना इत्यादि बहुत विस्तार पूर्वक सरलतासे समझाया है, बहुत क्या लिखे वर्षा जानने के लिये और तेजीमंदी जाननेके लिये तो यह एकही अपूर्व ग्रन्थ है। इस ग्रन्थके मूल श्लोक 6500 हैं, और इसके साथ इसका हिन्दी भाषान्तर भी कर दिया है, जिससे सामान्य पढा लिखा भी बडी सरलतासे समझ सकता है। इतना बडा ग्रंथ होनेपर भी समस्त लोग खरीद सके इसलिये इसका दाम सीर्फ रू०४ रक्खागया है, मगर प्रथमसे आठआना मनीओडरद्वारा भेजकर इस ग्रन्थका ग्राहक बनेगा उसको फक्त रू. 3 में मिलेगा.
SR No.022015
Book TitlePrastar Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Swami
PublisherAgarchand Bhairodan Sethiya Jain Granthalay
Publication Year1925
Total Pages282
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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