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________________ जेम नरकमां जाय तो नरक सात छे. देवलोकमां जाय तो देवलोक बार छे, एटले सात के बार ठामना परस्पर संयोगथी प्रस्तार थाय. एक वे त्रण आदि ठामना केटला केटला प्रस्तार थाय ते जाणवानो विधि आ प्रमाणे छे.- जेटला ठाम होय तेटलीवार बमणा बमणा करी एकेक भेलवतां जइए तो प्रस्तारनी संख्या नीकले. जेम एक ठाम होय तो एक पद, बे ठाम होय तो त्रण पद, त्रण ठाम होय तो सात पद, चार ठाम होय तो १५ पद, अने सात ठाम होय तो १२७ पद. तेनो यंत्र नीचे मुजब-- ठाम- १ २ ३ ४ ५ ६ ७. पद- १ ३ ७ १५ ३१ ६३ १२७. एम सात ठामना १२७ पद थाय. हवे तेमां असंयोगीनां के"टलां ? द्विकसंयोगीनां केटलां ? एम कोई पूछे तो जेटला ठामनां पद काढवां होय एटला उभा कोठा करवा अने त्रण कोठा आडा : करवा, तेमां सात ठामना असंयोगीना सात, माटे मध्यनी पंक्तिना पहेला कोठामा ७ नो अंक मुकवो, पछी उपरनी पंक्तिमां एक कोठो खाली मुकी बीजा कोठामां एक ओछो करी छ नो अंक मुकयो, एम एक एक घटाडतां पहेली पंक्तिना सातमा कोठामा एकनो अंक आवे । हवे नीचेनी पंक्तिमां एक कोठो मुकी बीजामां बेनो अंक मुकबो, पछी एक एक वधारतां सातमा कोठामा सातनो अंक आवे, पछी उपरनी पंक्तिये गुणवा अने नीचेनी पंक्तिये भागवा, जे अंक आवे तेथी मध्यपंक्तिना कोठा भरवा । जेमके-असंयोगीना सात छे तेने छये गुणी बेये भागतां २१ आवे ते द्विकसंयोगीना जाणवा, पछी एकवीसने पांचे गुणी त्रणे भागतां ३५ आवे ते त्रिक संयोगीना जाणवा । एम सात संयोगीनो एक जा.
SR No.022015
Book TitlePrastar Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Swami
PublisherAgarchand Bhairodan Sethiya Jain Granthalay
Publication Year1925
Total Pages282
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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