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________________ चतुर्विधदाननिरूपण स्यात्सार्वभौमसपत्तिः सर्वजीवसुरक्षया । ... तस्मात्सर्वे न हंतव्यास्सागसोपि निरागसः ॥ २३ ॥ अर्थ- संपूर्ण जीवोंकी रक्षासे चक्रवर्तीका पद भी प्राप्त होता है इस लिये चाहे कोई अपराधी हो निरपराधी हो उनको मारना नहीं चाहिये और न कष्ट देना चाहिये ॥ २३ ॥ व्रते क्लेशकरं वचो न न हरत्यन्यार्थमुादिकं। नातिकामति यो व्रती तमखिला देवो वदंतीत्ययं ॥ यद्यत्तेन कृतं च तत्तदखिलं सत्यं फलत्यन्वहम् । सर्व मानसवाचिकांगिकमहो सद्यः फलं यच्छति ॥२४॥ अर्थ-जो व्यक्ति दूसरोंके साथ कटुवचनका प्रयोग नहीं करता है, दूसरोंके धन भूमी आदिको अपहरण नहीं करता है, साधु संयमियोंका अविनय नहीं करता है उसे सब लोग देव कहते हैं, वह जो कुछ भी कार्य करता है उसमें उसे अवश्य सफलता मिलती है, उनके संपूर्ण मानसिक, वाचिक और कायिक कार्य तत्क्षण फल देते हैं ॥ २४॥ ...र्दियपनेसे होनेवाला नुकसान उदाहरणकेद्वारा दिखाते हैं. येऽत्र स्वाश्रितजीवयुग्ममदयन्दत्वोचितार्थान्सदा। विष्टिं कारयतीव गोपशुनरैः कार्य कृतं कारितं ॥ सर्व नश्यति तस्य तेन फलति क्षेत्रं न सर्व कृतं । नैष्फल्यं भवतीत्यवेत्य सुकृती सर्वान्धनैः पालयेत् ॥२५ अर्थ-जो व्यक्ति अपने आश्रित द्विपद [ नौकर चाकर ] चतुप्पद [ गाय, भैंस, बैल वगैरे आदि प्राणियोंको उचित द्रव्यादि देते हुए दया नहीं करता है उनसे बराबर अपना कामही लेता रहता है १ क्लेशकरोकिं न वदति न परार्थ हरति यस्तामह चान्ये ॥ देवोऽयमिति ब्रुवते नाघमतिस्तस्य सर्वसिद्धिः स्यात् ॥
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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