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________________ भावलक्षणविधानम् कोई परोपदेशमें पंडित होते हैं. परेषां प्रवदन्तोऽपि शुभाशुभफळं सदा ॥ केचित्स्वयं न जानन्ति माणिक्याः पक्षिणो यथा ॥२८॥ अर्थ-दूसरों को शुभाशुभ फलको अपने शकुन से कहते हुए भी रस्म व पक्षी स्वयं उस शुभाशुभ को नहीं जानते हैं। इसी प्रकार कोई परोपदेश में पंडित रहते हैं ॥ २८ ॥ ___ कोई बैलके तुल्य होते हैं.. परस्त्रीसंगमासक्ताः परार्थभृतविग्रहाः ॥ त्रातदेहेन्द्रियसुखाः केचिच्च वृषभा यथा ॥ २९ ॥ अर्थ संसार में ऐसे भी कोई मनुष्य हैं जो बैलके समान परस्त्रीसंगममें आसक्त रहते हैं, दूसरोंकी सेवामें ही सदा तत्पर रहते हैं, अपने देह व इंद्रियके सुखमें ही सदा मग्न रहते हैं ॥ २९ ॥ कोई पिंगलके तुल्य मिष्टवचनी होते हैं. मागच्छताद्य पुरतोऽध्वनि पीडनास्ती त्येवं ब्रुवन्त इव पिङ्गलपक्षिणोऽत्र । मांसाशिनः सुवचसा परिपूजनीया, मांसाशिनोऽपि कतिचिच्छुभभाषिणःस्युः ॥३०॥ अर्थ-पिंगल पक्षी अपने वचनसे कहता है कि आगे आज तुम मत जावो, मार्ग में पीडा है । मांसभक्षी होने पर भी उसका वचन शकुनशास्त्र में ग्राह्य है । इसीप्रकार इस संसार में मांसभक्षी भी कोई मीठे वचन को बोलनेवाले होते हैं ।। ३० ॥ ___ कोई चिकोडतुल्य होते हैं. केचित्स्वकुक्षिभृत्यर्थ लोकेष्टानि फलान्यपि । पातयन्तः स्वपुण्यानि चिक्रोडा इव जन्तवः ॥ ३१ ॥ अर्थ-चिक्रोड नामक जो जंतु है वह अपने उदरपूरण के
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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