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________________ शास्त्रदानविचार २८५ अर्थ-एक ही शास्त्र दानसे अन्य सभी दानोंकी सिद्धि होती है । विशेष क्या ? केवल शास्त्रदान से केवलज्ञानकी भी प्राप्ति होती है ॥ मिथ्याज्ञाननाश मिथ्याज्ञानतमोमूढो बंभ्रमीति भवार्णवे । मिथ्याज्ञानतमोध्वंसी शास्त्रज्योतिर्न चापरम् ॥ ५ ॥ अर्थ-मिथ्याज्ञानरूपी अंधकारसे यह मूर्ख जीव इस संसारसमुद्रमें परिभ्रमण करता है । यह शास्त्र ही मिथ्याज्ञानरूपी अंधकारको दूर करनेके लिए उज्ज्वल दीपकके समान है। अन्य कोई भी समर्थ नहीं है ॥ ५॥ যমজাহান। शास्त्रप्रकाशने तस्माद्रुवं धर्मः प्रकाशितः । . धर्मे प्रकाशिते सर्वे पुरुषार्थाः प्रकाशिताः ॥ ६॥ अर्थ-शास्त्रके प्रकाशन करने से उससे धर्मका प्रकाशन अपने आप होता है अर्थात् लोग धर्मके तत्वसे परिचित होते हैं । धर्मका प्रकाशन करनेपर समस्त पुरुषार्थ प्रकाशित होते हैं । अर्थात् समस्त जीवोंका उपकार होता है । इसलिए शास्त्रप्रकाशन का महत्त्व अधिक लोकका उपकार पुरुषार्थोपदेशे हि लोकस्योपकृतिर्भवेत् । ततो लोकोपकारार्थ शास्त्रमार्या वितन्वते ॥ ७ ॥ अर्थ-धर्म, अर्थ, काम व मोक्षपुरुषार्थके उपदेश देने से लोकका उपकार होता है । इसलिए लोकके उपकार के लिए सज्जन लोग शास्त्रदान करते हैं एवं इसीलिए पूर्वाचार्य शास्त्रकी रचना व व्याख्या करते हैं ॥ ७ ॥
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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