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________________ दानफलविचार अर्थ - जो व्यक्ति दूसरोंका द्वेष करते हैं एवं अपने परिग्रहपर स्नेह करते हुए जीवन व्यतीत करते हैं उनका हृदय अच्छा नहीं है, उनका स्वास्थ्य भी रोगादियों से युक्त होनेसे उनका जन्म व्यर्थ है ॥२४३॥ अन्यस्त्रीगुणरक्षण तस्वीगुणमवत्यन्ये येऽन्यस्त्रीगुणरक्षकाः । येऽन्यस्त्रीगुणहर्तारस्तत्स्त्रयोन्ये हरंत्यपि ॥ २४४ ॥ अर्थ — जो दूसरों की स्त्रियोंके गुणको संरक्षण करते हैं उनकी स्त्रियोंके भी गुण दूसरे रक्षण करते हैं । जो दूसरोंकी स्त्रियोंके गुणोंको अपहरण करते हैं दूसरे भी उनकी स्त्रियोंके गुणोंको अपहरण करते हैं ॥ २४४ ॥ पापरतों को सुख नहीं मिलता है षंढाः स्त्रीजनमेव राज्यमधना वृद्धाः स्त्रियो नंदना - | नारोग्यं गतजीविताश्च कुदृशो मोक्षं दिवं पापिनः ॥ मूकास्सद्वचनं सुशास्त्रहृदयं तत्त्वस्वरूपं जडाः । वांछतीन जनास्सुखं सुखकरं द्रव्यं च पापक्षयाः ॥ २४५ ॥ अर्थ - इस लोक में सांसारिक प्राणियों की परिपाटी है कि वे हमेशा उल्टे मार्गका अनुसरण करते हैं । नपुंसक लोग स्त्रियोंकी इच्छा करते हैं । दरिद्रीलोग राज्यकी कामना करते हैं, वृद्धस्त्रियां पुत्रोंको चाहती हैं। बिलकुल मरणसन्निकट मनुष्य स्वास्थ्यको चाहता है, मिध्यादृष्टिलोग मोक्षको चाहते हैं, पापीलोग स्वर्गको चाहते हैं | मूक लोग सुंदर वचनको बोलना चाहते हैं । अज्ञानी व मूर्ख शास्त्र व तत्वज्ञानकी लालसा करते हैं । इसी प्रकार पापकार्य में संलग्न सज्जन सुख व सुखकर साधनों की अपेक्षा करते हैं । परंतु जब उनका उद्योग उल्टी दिशा पर है तो वह सुख किस प्रकार मिल सकता है ? ॥२४५॥ केवल्यादिकी निंदाका निषेध केवल्यागमसंघ देववृषनिर्वादाद्धनादानतो । मर्मस्थानभवक्षतादिवं सरत्यात्माप्यपुण्यो भवेत् । २६९
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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