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________________ दानशासनम् पृष्ठ सोक ३३५ अलुब्धदाता १७८ १६ ३३६ पात्रसेवाफल १७८ १७ ३३७ उत्तमक्षमा १७९ १८ ३३८ मृदुवचनमाह १८० १९ ३३९ शक्तिमाह १८०-८१ २०-२१ ३४० दातृपात्रफलमाह १८१-८२ २२-२६ ३४१ क्षुधा कैसी है १८३ २७ ३४२ मुनिगण आहार किसवास्ते लेते हैं १८३ २८ ३४३ भोजनके समय मौन क्यों धरना चाहिए १८४ २९ ३४१ मौनगुणमाह १८४ ३०-३२ ३४५ मौनका उपदेश ३४६ पतिव्रताके समान पुण्यवचनको ही बले १८६ ३४ ३४७ शास्त्र ही बोलने सुनने योग्य है १८६ ३५ ३४८ मौनधारी की सदा प्रशंसा करते हैं १८६ ३६ ३४९ पाठान्तर १८७ ३७ ३५० भोजननिषिद्धस्थान ३५१ दाननिषेध १८८-८९३९.४. ३५२ भोजनान्तराय १८९.९० ४१-४२ ३५३ आहारके समय दया १९० ४३.४४ ३५४ निर्दोष तपस्वी कल्पवृक्षके समान है . १९१ ४५ ३५५ प्रतीकदानमाह ३५६ पुण्यवृद्धि के लिए सदा दान पूजादि करते हैं १९१.९२ ४७-४८ ३५७ कार्य को विचार कर ही करना चाहिए १९२ ४९ ३५८ साधुवोंको दिल खोलकर दान देवें
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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