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________________ दातृलक्षणविधिः १९५ 2000mnnn आदेश दिया है । भोजन के समय व अन्य योग्य कालमें मौन रहने से स्वाभिमानकी रक्षा होती है, ज्ञानकी उत्पत्ति होती है, पुण्यकी प्राप्ति व पापकी हानि होती है, देवादिक भी इससे वश होते हैं, क्रोधका नाश होता है, चित्तमें निर्मलता व आनंदकी वृद्धि होती है । मौनसे ही आगे आनेवाले विघ्न दूर होते हैं, परस्पर मित्रता की वृद्धि होती है, कषायवश उत्पन्न विवाद नष्ट होते हैं, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्बकचारित्र की रक्षा होती है । इतना ही नहीं अज्ञानका भी नाश होता है । इस प्रकार मौनधारणसे अनेक गुणोंकी प्राप्ति होती है ॥ ३० - ३१ - ३२ ॥ + शादो वृष्टिजलप्रभावजनितः स्वच्छांभसा क्षीयते । तद्वहर्वचसा भरेण जनितं दुनिमाहन्यते ॥ मौनेनैव समंत्रकेण बलवकर्माद्रिवज्रेण ते । दुर्ज्ञानापहतीक्षकैस्सुकृतिभिर्मोन सदा धार्यताम् ॥ ३३ ॥ अर्थ- -जिस प्रकार बरसातके पडनेसे उत्पन्न कीचड स्वच्छ पानीके प्रवाहसे धुल जाती है उसी प्रकार सद्गुणोंको नाश करनेवाले क्रोधादिक वचनोंसे उत्पन्न अविवेक मौनसे नष्ट होता है । अपराजितमंत्र से युक्त मौनरूपी ब्रदण्डसे ही बलवान् कर्मरूपी पर्वत भी नष्ट होता है। इसलिये अविवेकको दूर कर सम्यग्ज्ञानकी प्राप्तिसे आत्माकी प्रभावना करनेकी इच्छा रखनेवाले पुण्यात्मा सजन मौनको सदा धारण करें ॥ ३३ ॥ + संतोषो भाव्यते तेन वैराग्यं तेन भाव्यते । संयमः पोष्यते तेन मौनं येन विधीयते ॥ घाचंयमः पवित्राणां गुणानां सुखकारिणां सर्वेषां जायते स्थानं गुणानामिव नीरधिः ।। वाणी मनोरमा तस्य शास्त्रसंदर्भगर्भिता । आदेया जायते येनं क्रियते मौनमुज्ज्वलं ॥ २४
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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