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________________ पात्रभेदाधिकारः अर्थ- कोई २ मुनि एक दूसरेके प्रति मत्सरयुक्त होकर परस्पर एक दूसरेकी निंदा किया करते हैं जिस प्रकार कि स्वामीके दिये हुए धनको खाते हुए भी नीच सेवक अपने स्वामीकी निंदा करते हैं ॥ ३१ केचिद्विरागिणो भूत्वा बिंबानीवातिरागिणः । कुलाळामत्रनिक्षिप्तशिखिवत्कामविह्वलाः ॥ ३२ ॥ अर्थ- कोई २ मुनि विरागी होते ( कहलाते ) हुए भी बिंब फलके समान अत्यंत रागी होते हैं। कुंभकारके मटकोंको पक्क करनेवाली अनि समान कामपीडित रहते हैं ॥ ३२ ॥ लब्ध्वा राज्यमवंतीव भूपा बंधून्बलानि च । धृत्वा दीक्षां धनं लब्ध्वा केचिद्वान्धवपोषकाः ॥ ३३ ॥ १४३ अर्थ - जिस प्रकार राजा राज्यप्राप्ति करके अपने बंधुगण और सैन्यका रक्षण करते हैं । उसी प्रकार कोई मुनि दीक्षा धारण कर धन कमाते हैं और बांधों का पोषण करते हैं ॥ ३३ ॥ स्वामिद्रोहानिजं देशं मुक्त्वारिविषयं गताः । स्वामिद्रोहधराः केचिदशक्ता निरयं गताः ॥ ३४ ॥ अर्थ-स्वामिद्रोह के कारण जो अपने देशको छोडकर शत्रुराज्य में जावें तो वहां पीडित होते हैं, इसी प्रकार कितने ही अपने स्वामी व गुरुकी निंदा करनेसे नरक गये हैं ॥ ३४ ॥ निन्दन्ति निंदयंत्येव सगोत्रान्साधुपुंगवान् । जिनरूपधराः केचित् वायुभूत्यादयो यथा ॥ ३५ ॥ अर्थ – कोई २ वायुभूति आदि मुनियोंके समान मुनि उत्पन्न साधुवोंकी स्वयं निंदा करते होते हुए भी उत्तम कुलगोत्र में हैं और दूसरोंसे निंदा कराते हैं ।। ३५ ।। .
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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