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द्रव्यलक्षण mms
अर्थ-भोजनादिक-कार्यमें कुलीन और नीचोंका मिश्रण कुलनाशके लिये कारण होता है । इसीप्रकार मुनियोंके आहारमें इन बातोंको दोष मानकर उनका परिहार करना चाहिये ॥ १७ ॥
लोहान्योः कनकायसाविषसिताजंबालकस्तूरिका-। ज्योतिःसूर्यतमोरसायनपयोमध्वाज्ययोगाद्यथा ॥ दुष्टः स्यात्खलसंगतोऽपि सुजनः सत्संगतो दुर्जनी ।
यो द्वीपायनवञ्च पार्श्वमुनिवद्दक्षो वृषध्वंसने ॥ १८ ॥ अर्थ-लोहके साथ अग्नीका संसर्ग होनेपर अग्नीका कुछ नहीं बिगडता है, लोहेको ठोके पडते हैं, सोना और लोहेको मिलानेपर लोहेका कुछ नहीं बिगडता है, सोना खराब होता है । विष और शक्करको मिलानेपर विषका कुछ नहीं होता है, शक्कर खराब होती है, कीचड और कस्तूरीको मिलानेपर कीचडका कुछ नहीं होता है कस्तूरी बिगड जाती है । सूर्य के साथ केतु, चंद्रके साथ राहु के ग्रहण होनेसे सूर्य चंद्र ही कांतिविहीन होते हैं, उन ग्रहोंका कुछ नहीं बिगडता है, रसायन और पानी के संसर्गमें रसायन विकृत होता है पानीका कुछ नहीं होता, मधु और घीके संसर्गसे घी ही खराब होता है, मधुका कुछ नहीं होता। इसी प्रकार दुष्टोंके संसर्गसे सज्जनोंका धर्मनाश होता है । दुष्टोंका कुछ नहीं बिगडता है । जिस प्रकार कि द्वीपायन और पार्श्वमुनिका संसर्ग धर्मनाशके लिये कारण हुआ है ॥ १८ ॥
यहासीहस्तपक्वान्ने सती दत्ते न चामलं ।
शूदेण जातो ब्राह्मण्यां स्पाच्चाण्डालो यथा सुतः ॥१९॥ अर्थ-दासीके हाथसे पका हुआ आहार यदि कुलस्त्री दान देवें तो वह योग्य नहीं है। जिस प्रकार ब्राह्मण स्त्रीमें शूद्रसे उत्पन्न संतान चाण्डालके समान है ॥ १९ ॥