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________________ चतुर्विधदाननिरूपण होती हो उस राजाके महल, नगर, देश व संपत्ति अवश्य उसको छोडकर अन्यराजाके आश्रय करते हैं ॥ १०६॥ . द्रव्यमेकमिदं सर्व स्याच्छुभाशुभसूचकं । वाद्यध्वनिरिवाभाति स्याच्छुभाशुभसूचकः ॥१०७ ॥ अर्थ-जिप्त प्रकार वाद्यको ध्वनि विवाहादि मंगलकार्यो में शुभ सूचक है और शवविहारादि में अशुभसूचक है उसी प्रकार यह संपत्तिका सज्जनों के हाथमें जानेसे शुभकार्यों में विनिमय होता है एवं नांचोंके हाथमें जानेसे अशुभकार्योंके उपयोगमें आता है। १०७ ॥ दत्तं संपार्थ्य वित्तं विरचयति तयोरादरेणोभयोस्स- । त्पुण्यं सौख्यं सकोपं विफलकरमिदं चौर्यतो मूलनाशं ॥ यव्ये वंचनेनार्जितमिदमदनं भूरिद्रव्यार्जितं चेत्तद्वैरुप्ये च नश्यद्वयवहतिरिपुचौर्याधमर्णाग्निभूपैः १०८ अर्थ- जो कोई दीन आकर विनयसे धार्मिक दानीसे द्रव्य की याचना करे उस समय वह दयासे उसे इच्छित पदार्थको देवें तो उसमें दोनोंको मानसिक सुख होता है, दोनोंको पुण्यकी प्राप्ति होती है । यदि याचना करनेपर क्रोधित होकर देखें तो उस दानका फल व्यर्थ होता हैं । चोरी करके दान देखें तो मूलद्रव्यको भी लेकर जाता है । दुनियाको धोका देकर यदि कमाया हुआ द्रव्य हो तो वह दरिद्रताको प्राप्त करता है, यदि धन प्राप्तकर फिर गर्व करें तो वह धन व्यवहार, शत्रु, चोर, नीचोंका ऋण, अग्नि, दुष्टराजा इत्यादि कारणसे नष्ट होगा ॥ १०८ ॥ यः स्यादागतवंतमन्याविषयादीरं च वीरं नृपं । वैद्यं ज्योतिषिकादिसर्वमनुजानिष्कासयन् मारयन् ॥ तस्यैतद्धनमाहरन् कलुषयन् शीर्षागलिन्यासनं । धिक्कारं खलु कारयन्नभयदानायुःकुलादिक्षयः ॥१०९॥
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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