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________________ (१२४) गुणस्थानक्रमारोह. प्रथम संहननवाला मनुष्य सर्वार्थसिद्ध विमान तथा मोक्षमें जा सकता है । जो सप्त लव अधिक आयु वाला मुनि मोक्ष गमनके योग्य होता है, वही सर्वार्थसिद्ध आदि विमानोंमें जा सकता है। कहा भी है-सप्तलवा यदि आयुः प्राभविष्यत् तदाऽसेत्स्यन्नैव। तावन्मात्रं नाभूत् ततो लवसप्तमा जाताः ॥ १॥ सर्वार्थसिद्ध नाम्नि (विमाने) उत्कृष्ट स्थितिषु विजयादिषु । एकावशेषगर्भा भवन्ति लवसप्तमा देवाः ॥२॥ अर्थ-सप्तलव आयु अधिक होता तो सिद्धि (मोक्ष)को प्राप्त होता, अतः उतना अधिकायु न होनेसे लवसप्तमा कहा जाता है । सर्वार्थसिद्ध तथा विजयादि उत्कृष्टि स्थिति वाले विमानों में एक ही गर्भ संसारमें धारण करने वाले लवसप्तमा देवता होते हैं । यहाँ पर उपशम श्रेणीका वर्णन चल रहा है, अतः कोई प्रश्न करे कि उपशमश्रेणी वाला योगी तो केवल ग्यारहवें गुणस्थान तक ही चढ़ सकता है, फिर वहाँसे अवश्य ही उसका पतन होता है, अर्थात् ग्यारहवें गुणस्थानसे ऊपर वह चढ़ ही नहीं सकता, वहाँसे उसको अवश्य ही नीचे गिरना पड़ता है, तो फिर वह मोक्ष जानेके योग्य कैसे कहा जा सकता है ? इस शंकाका निराकरण इस प्रकार समझना कि एक मुहूर्त सतत्तर लवका होता है और एक मुहूर्त्तका ग्यारहवाँ भाग सप्त लव कहा जाता है, इस लिए सप्त लव अवशेष आयु वाला ही योगी श्रेणी गत ग्यारहवें गुणस्थानसे उपशमश्रेणीको भेदन करके नीचे सातवें गुणस्थानमें आता है। वहाँसे फिर आठवेंके आवंशसे क्षपकश्रेणीमें आरूढ होता है और पूर्वोक्त सप्त लवके अन्दर ही क्षीण मोह नामा बारहवें गुणस्थानके अन्तको प्राप्त करके अन्तकृत केवली होकर मोक्षमें जाता है। इस प्रकारसे उपशमश्रेणी वाला योगी भी उसी भवमें मोक्ष जा सकता है । जो लंबी आयु
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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