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________________ आठवाँ गुणस्थान. (१२३) शमक या उपशमक कहते हैं और जो योगी प्रथमसे ही उदय भावमें आई हुई कर्म प्रकृतियोंको क्रमसे नष्ट करता हुआ ऊपरके गुणस्थानोंमें प्रवेश करता है, उसे क्षपक कहते हैं। इसी तरह इतना और भी समझ लेना कि उदय भावमें आई हुई कर्म प्रकतियोंको क्रमसे क्षय करने वाला क्षपक योगी क्षपकश्रेणीको प्राप्त करता है और उदयमें आई हुई कर्म प्रकृतियोंको सत्तामें दबाने वाला शमक या उपशमक योगी उपशम श्रेणीको प्राप्त करता है। उपशम श्रेणीमें आरूढ हुए योगीकी गति बताते हैंश्रेण्यारूढः कृते काले, ऽहमिन्द्रेष्वेव गच्छति। पुष्टायु स्तूपशान्तान्तं नयेचारित्रमोहनम् ।।४१॥ - श्लोकार्थ-यदि श्रेणीमें आरूढ हुआ हुआ योगी काल करे तो अहमिन्द्र देवलोकोंमें जाता है और यदि आयु लंबा हो तो चारित्र मोहनीयको उपशान्तमोह ग्यारहवें गुणस्थानके अन्त तक पहुँचाता है। - व्याख्या-जो अल्पायु वाला मुनि उपशमश्रेणीको आरूढ़ होता है, वह मुनि आयु पूर्ण होनेसे यदि श्रेणीमें रहा हुआ काल करे तो सर्वार्थसिद्धादि विमानोंमें देवपने उत्पन्न होता है, परन्तु प्रथम संहनन वाला होवे तो ही सर्वार्थसिद्ध वगैरह विमानों में जा सकता है अन्यथा नहीं । शास्त्रमें फरमाया है-सेवार्तेन तु गम्यते चतुरो, यावत्कल्पान् कीलिकादिषु । चतुर्पु द्वि द्वि कल्पवृद्धिः प्रथमेन यावत्सिद्धिरपि ॥ १ ॥ अर्थ-अन्तिम संहनन वाला प्राणी चार देवलोक तक जा सकता है, कीलिकादि संहनन वाले मनुष्योंके लिए ऊपरके दो दो देव लोकोंकी क्रमसे वृद्धि समझ लेना और
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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