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________________ सातवाँ गुणस्थान. (११३ ) है। फिर उससे कोई भी पदार्थ अगोचर नहीं रहता, पुदगल निर्जीवजड़ रूप तथा रूपी है और आत्मा चैतन्य रूप तथा अरूपी है । जीवात्मा निश्चय नयकी अपेक्षासे आदि, मध्य, अवसान रहित है तथा स्व परका प्रकाशक है, उपाधिसे रहित ज्ञान स्वरूप और निश्चय प्राणोंसे जीने वाला है तथापि वह अशुद्ध निश्चय नयसे अनादि काल संचित कर्मके वश होकर द्रव्य प्राण तथा भाव प्राणोंसे जीने वाला होनेसे जीव कहा जाता है । शुद्ध द्रव्यार्थिक नयसे परिपूर्ण निर्मल-स्वच्छ दो उपयोग हैं तन्मय जीव है तथापि अशुद्ध नयसे जीवको क्षायोपशमिक ज्ञान और दर्शन होता है। व्यवहार नयसे मूर्त कर्माधीन होनेके कारण जीव वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, तथा रूपसे मूर्तिमान देख पड़ता है तथापि निश्चय नयसे अमूर्त, इन्द्रियोंसे अगोचर और शुद्ध स्वभावको धारण करने वाला है। निश्चय नयसे आत्मा क्रिया रहित, सर्व प्रकारकी उपाधियोंसे रहित तथा ज्ञान स्वरूप है, तथापि मन, वचन, कायिक व्यापारके करने वाली और कर्मके ही वशसे शुभाशुभ काँका कर्ता है । आत्मा निश्चय नयसे स्वभाव तया लोकाकाश प्रमाण असंख्य आत्म प्रदेशोंको धारण करने वाली है, क्योंकि जब केवल ज्ञान दशामें आयु कर्मके दलिक कम रहते हैं और वेदनीय कर्मके अधिक होते हैं तब वह केवल ज्ञानी महात्मा वेदनीय कर्मके अधिक दलियोंको खतम करनेके लिए अर्थात् वेदनीय कर्मको आयु कर्मके समान करनेके लिए अपने असंख्य आत्म प्रदेशोंको अपनी आत्मीय शक्तिसे तमाम लोकाकाशमें फैला देता है और केवल आठ समयके अन्दर चतुर्दश राजलोकके तमाम परमाणु ओंका संस्पर्श करके फिर आत्म प्रदेशोंको शरीरस्थ कर लेता है। इस बातका विशेष खुलासा हमें आगे क्षपक श्रेणीमें लिखना ૧૫
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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