SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उसयबाहिं ठाणं अनाउंछेण संकिलेसो यो पूयणचेडे मा रुय पडिलाभण वियडणा सम्म॥२॥ भा० सग्गाम परम्गामे दुविहा दूई उ होइ नायव्वा। सा वा सो वा भणई भणइ व तं छन्नवयणेणं ॥८॥ एक्केकाविय दुविहा पागड छन्ना य छन्न दुविह। 31 लोगुत्तरि तत्थेगा बीया पुण उभयपक्षेवि(सु)॥९॥ भिक्खाइए वच्चंते अप्पाहणि नेइ खंतियाईणी सा ते अमुगं माया सो व पिया ते इमं भणइ ॥४३०॥ दूइत्तं खु गरहियं अपाहिउँ बिइयपच्च्या भणति। अविकोविया सुया ते जा आह मई भणसु खंति॥१॥ उभ्येऽविय पच्छन्ना खंत! कहिनाहि खंतियाए तुम तं तह संजायंतियतहेव अह तं रेजासि हि)॥२॥ गामाण दोण्ह वरं। सेज्जायरि धूय तत्थ खंतस्स (गमो)। वहपरिणय खंतऽज्झत्थ( प्याह) णवणाए कए जुद्ध॥३॥ जामाइपुत्तपइमारणं च देण कहियंति जणवाओ। जामाइपुत्तपइमारएण खंतेण मे सिटुं॥४॥ नियमा तिकालविसएऽवि निमित्ते छव्विहे भवे दोसा सजंतु वट्टमाणे आउभए तत्थिमं नाय५॥लाभालाभं सुहं दुक्खं, जीवियं मरणं तहा।छविहेऽवि निमित्ते उ, दोसा होंति इमे सुणा५प्र०॥ आकंपिया निमित्तेण भोइणी भोइए चिरगयमिो पुवभणिए कह ते आग? रुट्ठोय वड(ल)वाए॥६॥दूराभोयण एगागि आगओ परिणयस्स पच्चोणी। पुच्छा समणे कहणं साइयंकार सुभिणाई॥३३॥भागकोवो वडवागब्भं च पुच्छिओ पंचपुंडमाइंसुोफालण दिटे जइ नेव तो तुहं अवितहं कइ वा॥३४॥भा० जाई कुल गण कम्मे सिप्पे आजीवणा 3 पंचविहा।सूयए असूयाए व अप्याण कहेहि एक्केछ ॥७॥ जाईकुले विभासा गणो 3 मलाइ कम्म किसिमाई। तुण्णाइ सिप्पऽणावज्जगं च कम्मेयराऽऽवज ॥८॥ श्री पिण्डनियुक्ति सूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021043
Book TitleAgam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_oghniryukti
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy