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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अहं व से देमि॥३॥अहिगरण भद्दपंता कम्मुदय गिलाणए य उड्डाहो। चडुकारी य अवन्नो नियगो अन्नं च जं संके॥४॥अयमवरो | | 3 विकप्यो भिक्खायरि सड्ढि अद्धिई पुच्छ।। दुक्खसहाय विभासा हियं च धाइत्तणं अजो!॥५॥ व्यगंडतणुयथूलत्तणेहिं तं पुच्छिउँ अयाणंतो। तत्थ् गओ तस्समक्खं भणाइतं पासि बाल॥६॥ अणुद्वियं व अणविक्खियं व इणमं कुलं तु मन्नामि। पुन्नेहिं जहिताए जदिच्छाए व तर( चल )ई बालेण सूएमो॥७॥ थेरी दुब्बलखीरा चिमि( विवि)ढो पेल्लियमूहो अइथणीए। तणुई | उ मंदखीरा कुप्परथणियाए सूइमुहो॥८॥ जा जेण होइ वन्नेण उकड। गहए य तं तेणी गरहइ समाण तिव्वं पसत्यमियरं च दुव्वन्न॥९॥उव्वट्टिया पओसं छोभग उब्भामओ य से जंतु। होज्जा मन्झवि विग्यो विसाइ इयरी व एमेव॥४२०॥ एमेव सेसियासुवि | सुयभाइसु करणकारणं सगिहे। इड्ढीसु य धाईसु य तहेव उव्वट्टियाण गमो॥१॥ लोलइ महीए धूलीए गुंडिओ हाणि अहवणं | मजे। जलभीरु अबलनयणो अइउप्पिलणे अ रत्तच्छो॥२॥ अब्भंगिय संवाहिय उव्वट्टिय मज्जियंच तो बाली उवणेइ मजाधाई मंडणधाईए सुइदेहं ॥३॥ उसुआइएहिं मंडेहि ताव णं अहवणं विभूसेमि। हत्थिच्चगा व पाए कया गलिच्चा व पाए ॥४॥ ढड्ढरसर छुन्न हो मउयगिरो मउयमम्मणुलावो। उल्लावणगाईहिं व करेइ कारेइ वा किड्डं॥५॥ थुल्लीए वियडपाओ भगकडी सुकडाए दुक्खंची निम्भंसकक्खडकरहिं भीरुओ होइ घेण्यते॥६॥कोलइरे वत्थव्वो दत्तो आहिंडओ भवे सीसो अवहरइ धाइपिंड अंगुलिजलणे यसादिव्व॥७॥ओमे संगमथेरा गच्छ विसज्जति जंघबलहीणा।नवभागखेत्तवसही दत्तस्स य आगमो ताहे ॥३१॥भा०। श्री पिण्डनियुक्ति सूत्रा पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021043
Book TitleAgam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_oghniryukti
File Size11 MB
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