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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir आयाणुग्गहबुद्धीए संजयाणं दाणं, अतिहिंसविभागस्स समणोवसरणं इमे पंच अइयारा जाणियव्या तं जहा सच्चित्तनिक्खेवणया सच्चित्त-पिहणया कालाइक्कमे परवएसे मच्छरिया य॥४९॥ सूत्र. २॥ (८१) इत्थं पुण समणोवासगधम्मे पंचाणुव्वयाई तिन्नि गुणव्वयाई आवकहियाई चत्तारि सिक्खावयाई, इत्तरियाई एयस्स पुणो समणोवासगधम्मस्स मूलवत्थु सम्मत्तं तं जहा तं निसग्गेण वा अभिगमेणं वा पंच अइयारविसुद्ध अणुव्वयगुणंव्वयाइं च अभिग्गा अन्नेवि पडिमादओ विसेसकरणजोगा॥ ४९॥ सूत्र. 30 अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाझूसणाराहणया इमीसे समणोवासएणं इमे पंच अश्यारा जाणियव्वा तं जहा इहलोगासंसप्पओगे परलोगासंसप्पओगे जीवियासंसप्पओगे मरणासंसप्पओगे कामभोगासंसप्पओगे ॥५०॥ सूत्र.40 (८२) उग्गए सूरे नमुक्कारसहियं पच्चक्खाइ चव्विहं पि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थ्णाभोगेणं सहसागारेणं वोसिरइ ॥५०-१॥ सूत्र. 11 (८३) उग्गए सूरे पोरिसिं पच्चक्खाइ चव्विहंपिआहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहवयणेणं सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरइ ॥५०-२॥ सूत्र. २१ (८४) सूरे उग्गए पुरिमई पच्चक्खाइंचव्विहंपिआहारं असणं पाणंखाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं | ॥ श्रीआवश्यक सूत्र । पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021042
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages33
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size7 MB
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