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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अणुसमयी सम्झाए वटुंतो खणे खणे जाइ वेग्ग॥८॥ उड्ढमहे तिरियमि य जोइसवेमाणिया य सिद्धी यो सव्वो लोगालोगो सम्झायविउस्स पच्चक्ख ॥९॥ दुवालसविहंमिवि तवे सभितरवाहिरे कुसलदिढे। णवि अस्थि विय होही सज्झायसमं तवोकम्म॥११०॥ एगदुतिमासक्खमणं संवच्छरमवि य अणसिओ होजा। सज्झायझाणरहिओ एगोवासफलंपि ण लभेजा॥१॥ उग्गमउपायणएसणाहिं सुद्धं तु निच्च भुंजतो। जइ तिविहेणाउत्तो अणुसमय भवेज सझाए॥२॥ ता तं गोयम! एगग्गमाणसत्तं ण उवमिङ सका। संवच्छरखवणेणवि जेण तहिं णिज्जाऽणंता॥३॥ पंचसमिओ तिगुत्तो खंतो दंतो य निजरापेही एगग्गमाणसो जो करेज सझाय मुणीभत्ते (सुणिब्भंतो॥४॥ जो वागरे पसत्थं सुयनाणं जो सुणेइ सुहभावो। ठझ्यासवदारत्तं तकालं गोयमा! दोण्हं ॥५॥ एगपि जो दुहत्तं सत्तं पडिबोहिउँ ठवइ मग्गे। ससुरासुरंमिवि जगे तेणेह घोसिओ अभाघाओ॥६॥ धाउपहाणो कंचणभावं न य गच्छई कियाहीणो। एवं सव्वोवि जिणोवएसहीणो न बुझेजा॥७॥ गयरागदोसमोह। धम्मकहं जे करेंति समयन्नू। अणुदियहमवीसंता सव्वप्यावाण मुच्चंति॥८॥ निसुगंति अभयणिज्ज एगंतं निरं कहताणी जइ अन्नहा ण सुत्तं अत्थं वा किंचि वाएजा॥११९॥ एएणं अटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ जहा णं जावजीवं अभिग्गहेणं चाउकालियं सज्झायं कायव्वंति, तहा अ गोअमा! जे भिक्खू विहीए सुपसत्थनाणमहिजेऊण नाणमयं करेजा सेवि नाणकुसीले, एवमाइनाणकुसीले अणेगहा पन्नविज्जति३४) से भ्यवं! कतरे ते दंसणकुसीले?, गोयमा! ते दसणकुसीले दुविहे नेए आगमओ णोआगं तत्थ ॥ श्री महानिशीथसूत्र । पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021041
Book TitleAgam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages239
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size15 MB
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