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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गयणट्ठियाए पवयणदेवयाए से कुमारे-तंजहा जो दलइ मुछिपहरेहिं मंदरं घरइ करयले वसुहं। सव्वोदहीणवि जलं आयरिसइ एक्कघोट्टेणं॥१३॥ टाले सम्गाउ हरिं कुणइ सिवं तिहयणस्सविखणेणी अक्खंडियसीलाणं कुत्तोऽवि ॥ सो पहप्पेज्जा ॥४॥ अहवा सोच्चिय जाओ गणिज्जए तिहयणस्सवि स वंदो। पुरिसो व महिलिया वा कुलुग्गउ जो न खंडए सील ॥५॥ परमपवित्तं सुप्पुरिससेवियं सयलपावनिम्महणं । सव्युत्तमसोक्खनिहिं सत्तरसविहं जयइ सील ॥६॥ ति भाणिऊणं गोयमा! झत्ति मुक्का कुमारस्सोवरि कुसुमवुद्धिं पवयणदेवयाए, पुणोऽवि भणिमाढत्ता देवया तंजहा 'देवस्स देति दोसे पवंचिया अत्तणो सकम्मेहि। ण गुणेसु ठविंतऽयं सुहाई मुद्धाए जोएंति ॥१७॥ मत्थभाववत्ती समदरिसी सव्वलोयवीसासो। निक्खेवयपरियत्तं दिव्यो न करेइ तं ढोए ॥८॥ता बुझिअण सव्वुत्तभंजणा सीलगुणमहिड्ढीयो तामसभावं चिच्चा कुमारपयपंक्यं णमह ॥१९॥त्ति भणिऊणं अहंसणं गया देवया इति, ते छइल्लपुरिसे लहुं व गंतूणं साहियं तेहिं नरवइगो, तओ आगओ बहुविकप्पकल्लोलमालाहिं णं आऊरिज्जमाणहिययसागरो हरिसविसायवसेहिं भीउड्ड(४)या तत्थचकियहियओ सणियं गुज्झसुरंगखडकियादारेणं कंपंतसव्वगत्तो महया कोउहालेणं, कुभारदसणुक्कंठिओय तमुद्देस, दिट्ठोय तेणं सो सुगहियणामधेजो महायसो महासत्तो महाणुभावो कुमारमहरिसी, अपडिवाइमहोहीपच्चएणं साहेमाणो संखाइयाइभवाणुहूयं दुक्खसुहं सम्मत्ताइलभं संसारसहावं कम्मबंधहितीविभोक्खमहिंसालक्षणमणगारे वयरबंधं णरादीणं सुहणिसत्रो सोहम्माहिवइधरिउवरिपंडुरायवत्तो, ताहे य तमदिट्ठपुव्वमच्छेरगं दठुण पडिबुद्धो ॥ श्री महानिशीथसूत्र ॥ | २१० पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021041
Book TitleAgam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages239
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size15 MB
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