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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ॥ श्री देवेन्द्रस्तव सूत्रं ॥ अमरनरवंदिए वंदिऊण उसभाइए जिणवरिंदे। वीरवर अपच्छिमंते तेलुक्कगुरू पण मऊणं ॥ १॥ ९२९ ॥ कोई पढम्पाउसंमि सावओ समयनिच्छयविहिष्णू । वन्नेइ थयमुयारं जियमाणे वद्धमाणम्मि॥ २॥ तस्थुणंतस्स जिणं सोइयकडा पिया सुहनिसन्ना । पंजलिउड अभिमुहा सुणइ थयं वद्धमाणस्स ॥ ३ ॥ ईदविलयाहिं तिलयरयणंकिए लक्खणंकिए सिरसा। पाए अवगयमाणस्स वंदिमो वद्धमाणस्स ॥ ४ ॥ विणयपणएहिं सिढिलमउडेहिं अपडिया जस्स देवेहिं । पाया पसंतरोसस्स वंदिमो वद्धमाणस्स ॥ ५ ॥ बत्तीसं | देविंदा जस्स गुणेहिं उवहम्मिया छायं। तो (प्र० नो) तस्स वियच्छेयं पायच्छायं उवेहामो ॥ ६ ॥ बत्तीसं देविंदत्ति भणिषमित्तंभि सा पियं भगइ | अंतरभासं ताहे कामो कोउहल्लेणं ॥ ७॥ कयरे ते बत्तीसं देविंदा को व कत्थ परिवसइ । केवइया कस्स ठिई को भवणपरिग्गहो तस्स? ॥ ८ ॥ केवइया व विमाणा भवणा नगरा व हुंति के वइया । पुढवीण व बाहल्लं उच्चत विमाण छन् वा ? ॥ eu का रंति व का लेणा उक्कोसंमज्झिमंजहण्णाणं । उस्सासो निस्सासो ओही विसओ व को केसिं? ॥१०॥ विणओवयार ओवहम्मियाइँ। हासवसमुव्वहंतीए । पडिपुच्छिए पियाए भाइ सुअणु ! तं निसामेहि ॥ १ ॥ सुअणाणसागराओ मुणिओ पडिपुच्छणाइ जं लद्धं । ॥ श्री देवेन्द्रस्तव सूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित १ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.021034
Book TitleAgam 32 Prakirnaka 09 Devendrastava Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages33
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_devendrastava
File Size6 MB
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