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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जोईसरजणवीरभद्दमणिआणुसारिणीमिणमो। भत्तपरिन्न धना पढ़ति निसुणंति भावेति॥१॥ सत्तरिसयं जिणाण व गाहाणं समयखित्तपन्नत्ती आराहतो विहिणासासयसुक्खंलहइ मुक्खं ॥१७२॥(१-४४७) इति भत्तपरिन्नापइण्णं समत्तुं४॥प्रभुमहावीरस्वामीनीपट्ट परंपरानुसार कोटीगण-वैरी शाखा- चान्द्रकुल प्रचंड प्रतिभा संपन्न, वादी विजेता परमोपास्यपू. मुनि श्री झवेरसागरजीम.सा. शिष्य बहुश्रुतोपासक-सैलाना नरेश प्रतिबोधक-देवसूर तपागच्छ-समाचारी संरक्षक-आगमोध्धारक पूज्यपाद आचार्य देवेश श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी महाराजा शिष्य प्रौढ़ प्रतापी, सिध्धचक्रआराधक समाज संस्थापक पूज्यपाद आचार्य श्री चन्द्रसागरसूरीश्वरजी/ म.सा. शिष्य चारित्र चूडामणी, हास्यविजेता-मालवोध्धारक महोपाध्याय श्री धर्मसागरजी म.सा. शिष्य आगमविशारद-नमस्कार महामंत्र समाराधक पूज्यपाद पंन्यासप्रवर श्री अभयसागरजी म.सा. शिष्य शासन प्रभावक-नीडरवक्ता पू. आ. श्री अशोकसागर म.सा. शिष्य परमात्म भक्तिरसभूत पू. आ. श्री जिनचन्द्रसागर सू.म.सा. लघु गुरु भ्राता प्रवचन प्रभावक पू. आ. श्री हेमचन्द्रसागर सू.म. शिष्य पू. गणिवर्य श्री पूर्णचन्द्र सागरजी म.सा. आ आगमिक सूत्र अंगे सं.२०५८/५९/६० वर्ष दरम्यान संपादन कार्य माटे महेनत करी प्रकाशक दिने पू. सागरजी म. संस्थापित प्रकाशन कार्यवाहक जैनानंद पुस्तकालय सुरत द्वारा प्रकाशित करेल छे. भक्तपरिज्ञा | संपादक श्री For Private And Personal Use Only
SR No.021029
Book TitleAgam 27 Prakirnaka 04 Bhaktaparigna Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages25
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhaktaparigna
File Size6 MB
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