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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाणियं तिसिओ॥४॥इच्छामो अणुसर्टि भंते! भवपंकतरणदढलहिँ जंजह उत्तं तं तह रेमि विणओणओ भणइ॥५॥जइ कहवि असुहकम्भोदएण देहम्मि संभवे वियणा। अहवा तण्हाईया परीसहा से उदीरिजा॥६॥ निद्धं महुरं पल्हायणिजहिअयंगमं अणलियं चोतो सेहावेअव्वो सो खवओपन्नवंतेणं॥७॥संभरसुसुअण! जंतं मझंमिचव्विहस्ससंघस्सोवूढा महापइन्ना अहयं आराहइस्सामि |॥८॥अरिहंतसिद्धकेवलिपच्चक्खं सव्वसंघसक्खिस्सो पच्चक्खाणस्स कयस्स भंजणं नाम को कुणइ? ॥९॥ भालुंकीए करुणं खज्जतो घोरवियणत्तोऽविआराहणं पवनो झाणेण अवंतिसुकुमालो॥१६०॥ मुग्गिल्लगिरिमिसुकोसलोऽवि सिद्धत्थदइअओ भयो। वग्धीए खजंतो पडिवन्नो उत्तभं अटुं ॥१॥ गुढे पाओवंगओ सुबंधुणा गोमए पलिविअम्मिो इझंतो चाणको पडिवन्नो उत्तम अटुं॥ २॥ अवलंबिऊण सत्तं तुमंपि ता धीर! धीरयं कुणसु। भावेसु य नेगुन्नं संसारमहासमुद्दस्स ॥ ३॥ जम्मजरामरणजलो अणाइमं| वसणसावयाइन्नो। जीवाण दुक्खहेऊ, कटुं रूद्दो भवसमुद्दो ॥४॥धन्नोऽहं जेण भए अणोरपारंमि भवसमुद्दम्भिो भवसयसहस्सदुलहं लद्धं सद्धम्मजाणमिणं ॥५॥एअस्स पभावेणं पालिजंतस्स सइ प्यत्तेणीजम्भतरेऽविजीवा पावंति न दुक्खदोगच्चं ॥६॥चिंतामणी अउव्वो एअमपुव्वो य कप्परुक्खुति एवं परमो मंतो एयं परमामयसरिच्छं ॥७॥ अह मणिमंदिरसुंदरफुरंतजिणगुणनिरंजणुजोओ। पंचनमुक्कारसमे पाणे पणओ विसज्जेइ ॥८॥परिणामविसुद्धीए सोहम्मे सुरवरी महिड्डीओआराहिऊण जायइ भत्तपरिन्नं जहन्नं सो॥ ९॥ उकोसेण निहत्थो अच्चु कप्पंभि जायए अमरो। निव्वाणसुहं पावइ साहू सव्वद्ध सिद्धिं वा॥ १७०॥ इअ ॥ ॥ श्री भक्तपरिक्षा सूत्र॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021029
Book TitleAgam 27 Prakirnaka 04 Bhaktaparigna Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages25
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhaktaparigna
File Size6 MB
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